श्रीकांत बोला Story: नेत्रहीन लड़के को IIT ने किया था रिजेक्ट, आज खड़ी की 80 करोड़ की कंपनी!

श्रीकांत बोला Story: नेत्रहीन लड़के को IIT ने किया था

शुरुआती जीवन और संघर्ष

  • श्रीकांत बोला का जन्म 1993 में आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव सीतारामपुरम में हुआ। उनके माता-पिता गरीब और अशिक्षित थे, और परिवार की कुल आय मात्र 1600 रुपये थी। नेत्रहीन होने के कारण गांव वालों ने उनके माता-पिता को उन्हें छोड़ने तक की सलाह दी।
  • श्रीकांत का बचपन मुश्किलों से भरा था। उन्हें समाज से दया मिली, लेकिन उन्होंने हमेशा खुद को साबित करने की ठानी। गांव के स्कूल में भेदभाव झेलने के बाद, उनके पिता ने उन्हें हैदराबाद के नेत्रहीन स्कूल में दाखिला दिलाया। वहां उन्होंने पढ़ाई में शानदार प्रदर्शन किया और दसवीं में टॉप किया। इस उपलब्धि के कारण उन्हें एपीजे अब्दुल कलाम के 'लीड इंडिया प्रोजेक्ट' से जुड़ने का मौका मिला।

शिक्षा में बाधाएं और जीत

  • श्रीकांत साइंस पढ़ना चाहते थे, लेकिन नेत्रहीन होने के कारण उन्हें अनुमति नहीं मिली। उन्होंने कानून का सहारा लिया और अंततः साइंस की पढ़ाई की। 12वीं में उन्होंने 98% अंक हासिल किए।
  • इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए आईआईटी में एडमिशन न मिलने के बाद उन्होंने अमेरिका की चार यूनिवर्सिटी में आवेदन किया और एमआईटी में दाखिला पाया। वह एमआईटी में पढ़ने वाले पहले अंतरराष्ट्रीय नेत्रहीन छात्र बने।

बिजनेस की राह और सफलता

  • एमआईटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्हें कई कंपनियों से जॉब ऑफर मिले, लेकिन उन्होंने भारत लौटकर दिव्यांगों की मदद करने का फैसला किया। 2012 में उन्होंने 'बोलेंट इंडस्ट्रीज' की शुरुआत की, जो दिव्यांगों और अशिक्षित लोगों को रोजगार देती है।
  • श्रीकांत की कंपनी ने तेजी से तरक्की की और आज इसका टर्नओवर 80 करोड़ रुपये से अधिक है। उनकी कंपनी के पांच शहरों में प्लांट हैं, जिनमें से एक 100% सौर ऊर्जा से संचालित होता है। 2017 में, फोर्ब्स ने उन्हें एशिया के 30 साल से कम उम्र के प्रभावशाली उद्यमियों की सूची में शामिल किया।

प्रेरणा और सीख

श्रीकांत बोला की कहानी हमें सिखाती है कि कोई भी शारीरिक अक्षमता सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकती। उनकी मेहनत, आत्मविश्वास और कभी हार न मानने की जिद ने उन्हें सफलता दिलाई। आज वह लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन चुके हैं।

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