सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले गुरू, गुरू नानक देव जी का जन्म 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन वर्तमान पाकिस्तान के तलवंडी (जिसे ननकाना साहिब भी कहा जाता है) नामक गांव में हुआ था। गुरू नानक देव जी की जन्म जयंती को गुरू पूरब या गुरू पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुरू नानक देव जी ने अपनी शिक्षाओं के आधार पर ही सिख धर्म की नींव रखी, जोकि एकेश्वरवादी धर्म है। यह धर्म ईश्वर की एकता, समानता और सामाजिक न्याय पर जोर देता है।
बचपन की कहानी
गुरू नानक देव जी का झुकाव बचपन से ही अध्यात्म की ओर हो गया था। किवदंतियों के अनुसार आपजी ने बचपन से ही ज्ञान और ध्यान करना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपने शुरुआती जीवन में ही जीवन के रहस्यों के बारे में विचार करना शुरू कर दिया था और 30 साल की उम्र में उन्हें दिव्य ज्ञान की अनुभूति हुई, जिसने उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायता की। इस अनुभव को अक्सर "दिव्य आह्वान" कहा जाता है।
सिख धर्म
गुरू नानक देव जी की शिक्षाएं सिख धर्म के मूल सिद्धांतों का आधार हैं, जो "इक ओंकार" की अवधारणा में समाहित हैं, जिसका अर्थ है "एक ईश्वर।" उन्होंने एकेश्वरवाद पर जोर दिया और जाति, पंथ और धर्म द्वारा बनाए गए विभाजन को खारिज कर दिया। आपजी ने लोगों तक अपने सन्देश को प्रसारित करने के लिए विभिन्न धर्मों के लोगों के साथ संवाद करने के लिए बड़े पैमाने पर लम्बी दूरी की यात्राएं की।
उन्होंने "नाम जपना" (भगवान का ध्यान करना), "कीरत करनी" (ईमानदारी से अपना कर्म करना), और "वंड छकना" (दूसरों के साथ साझा करना) का विचार पेश किया। इन सिद्धांतों ने एक धार्मिक और सही जीवन शैली की नींव रखी। उन्होंने गुरू अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था और बाद के गुरूओं को दिव्य ज्ञान प्रदान किया।
शिक्षाएं
गुरू नानक देव जी का जीवन और शिक्षाएं मानवता के लिए बहुमूल्य हैं –
- एकेश्वरवाद:
गुरू नानक देव जी ने एकेश्वरवाद पर जोर दिया और यह सिखाया कि सारी मानवता एक ही शक्ति के द्वारा जुड़ी हुई है। इसके लिए उन्होंने "इक ओंकार" की अवधारणा दी, जिसका अर्थ है "ईश्वर एक है"।
- समानता: गुरू नानक देव जी ने जाति, पंथ और लिंग के आधार पर भेदभाव का पुरजोर विरोध किया और इस बात पर जोर दिया कि ईश्वर की नजर में सभी समान हैं। यही कारण है कि आज भी गुरुद्वारों में बिना किसी भेदभाव के सभी को लंगर परोसा जाता है।
- मानवता:
गुरू नानक ने सभी के लिए निःस्वार्थ सेवा और करुणा को प्रोत्साहित किया। वह समाज की भलाई में सक्रिय रूप से भाग लेने में विश्वास करते थे। आज भी जहां कहीं भी ज़रूरत होती है, हमारे सिख भाई सबसे पहले सेवा और सहायता के लिए पहुंचते जाते हैं।
- कड़ी मेहनत और ईमानदारी:
"कीरत करना" की अवधारणा कड़ी मेहनत और ईमानदारी से ईमानदार जीवन जीने के महत्व को दर्शाती है।
- भक्ति और ध्यान:
"नाम जपना" आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के साधन के रूप में भगवान के नाम को याद करने और ध्यान करने के अभ्यास को प्रोत्साहित करता है।
गुरू नानक की शिक्षाओं ने सिख धर्म पर एक अमिट छाप छोड़ी है और दुनियाभर के लाखों लोगों को प्रेरित करती रही है। गुरू नानक देव जी की जयंती न केवल उनके जन्म का उत्सव है, बल्कि उनके पवित्र ज्ञान पर विचार करने का और उनकी शिक्षाओं को हमारे जीवन में शामिल करने का भी अवसर है।