Seaweed Industry: मेडिकल फूड ‘समुद्री शैवाल’ की विश्व में है भारी डिमांड, सरकार भी कर रही प्रोत्साहित
औषधीय गुण होने के कारण पूरी दुनिया में समुद्री शैवाल (Seaweed) की खूब डिमांड है. यह एक प्रकार की समुद्री वनस्पति होती है, जिसमें 70 से 80 खनिज पाए जाते हैं. इसमें वे सभी एमिनो एसिड होते हैं जो इंसान की शरीर के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. इसमें सभी प्रकार के विटामिन भी मौजूद हैं. यह कैंसर जैसे घातक रोगों की दवा बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है. समुद्री लाल शैवाल से प्राप्त यौगिकों का उपयोग सैनिटरी वस्तुओं पर एक कोटिंग सामग्री के रूप में किया जा सकता है और साथ ही इसका उपयोग कोविड-19 से लड़ने के लिए एंटीवायरल दवाओं के उत्पादन में भी किया जा सकता है. पोषक तत्वों की भरमार के चलते इसे मेडिकल फूड कहा जाता है. Promote Your Business Online: इन 4 बेहतरीन टिप्स के साथ अपने बिजनेस को करें ऑनलाइन प्रमोट
केंद्र सरकार समुद्री शैवाल (सीविड) का उत्पादन बढ़ाने के लिए इसकी खेती को प्रोत्साहित कर रही है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत इसके लिए पांच साल की परियोजना आरंभ की गई है जिस पर 640 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं. केंद्र सरकार का कहना है कि 2025 तक दुनिया में समुद्री शैवाल के कारोबार में भारत की हिस्सेदारी अहम होगी.
समुद्री शैवाल का वैश्विक उत्पादन 32 मिलियन टन है जिसका मूल्य लगभग 12 अरब अमेरिकी डॉलर है. कुल वैश्विक उत्पादन का 57 प्रतिशत हिस्सा चीन, 28 प्रतिशत इंडोनेशिया इसके बाद दक्षिण कोरिया और 0.01-0.02 प्रतिशत भारत द्वारा उत्पादित किया जाता है. शैवाल की खेती के कई लाभ होने के बावजूद दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के समान भारत में अभी भी इसकी व्यावसायिक खेती उपयुक्त पैमाने पर नहीं की जाती.
एक अनुमान के अनुसार यदि भारत में 10 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र या भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र के 5% में इसकी खेती की जाए तो पांच करोड़ लोगों को रोजगार मिल सकता है, नया समुद्री शैवाल उद्योग स्थापित हो सकता है जो राष्ट्रीय जीडीपी में बडा योगदान कर सकता है, समुद्री उत्पादों में वृद्धि् कर सकता है, जल क्षेत्रों में शैवालों की अनावश्यक भरमार को कम कर सकता है, लाखों टन कार्बन डाइ आक्साइड को अवशोषित कर सकता है, समुद्री पर्यावरण को बेहतर बना सकता है और 6.6 अरब टन जैव ईंधन का उत्पादन संभव बना सकता है.
भारत में समुद्री शैवाल की अपार और अप्रयुक्त क्षमता को देखते हुए टाइफैक (Technology Information, Forecasting and Assessment Council) ने 2018 में समुद्री शैवाल पर एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें इस क्षेत्र की बड़ी संभावनाओं को उजागर करने के अलावा इससे सबंधित सुझावों को लागू करने के लिए एक रोड मैप भी तैयार किया गया था. शैवालों की खेती के लिए गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक को उत्तम बताया गया है.
टाइफैक (TIFAC) की गवर्निंग काउंसिल की बैठक में कई सिफारिशों पर चर्चा की गई और मिशन शुरू करने के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने का निर्णय लिया गया. टाइफैक की भूमिका नेटवर्क का संचालन करना, कृषि के तरीकों का प्रदर्शन करना, मूल्यवर्धन उत्पादों को शामिल करना, नीतिगत बदलावों का समर्थन करना और नियामक मुद्दों पर सलाह देना और बाजार नियंत्रण आदि की होगी.
केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भी समुद्री शैवाल की खेती को तटीय भूभाग में रहने वाले समुदायों के जीवन को बदलने की क्षमता वाला एक उभरता हुआ क्षेत्र बताया है. 1 फरवरी को 2021-22 के लिए आम बजट पेश करते हुए उन्होंने कहा कि यह बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करेगा और अतिरिक्त आय सृजित करेगा. उन्होंने समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देने के लिए तमिलनाडु में एक बहुउद्देशीय समुद्री शैवाल पार्क स्थापित करने की घोषणा की.