आज हमें जब किसी तथ्यात्मक जानकारी की जरूरत होती है तो हम गूगल को खंगालते हैं. ऐसा लगता है कि हमारा बौद्धिक ज्ञान अथवा विकास गूगल के इर्द-गिर्द ही फंस कर रह गया है. यद्यपि हमारे प्राचीन ग्रंथों वेद, पुराण, महाभारत और भगवद गीता इत्यादि में जीवन के सारे तथ्य समाहित हैं. इन्हीं में से एक भगवद गीता भी किसी खजाने से कम नहीं हैं. यहां हम भगवद गीता के ही कुछ श्लोक पर प्रकाश डालेंगे, इन श्लोकों से आज के व्यवसायी खासकर स्टार्टअप्स बहुत ज्ञान हासिल कर सकते हैं.

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

'कर्म' के बारे में विभिन्न माध्यमों से बहुत कुछ कहा-सुना गया है, लेकिन असली सार इन दो सरल पंक्तियों में निहित है. हर व्यवसायी को परिणाम या परिणाम की आशंका पर चिंता किये बिना कर्म पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए. आपको फाइनल प्रोडक्ट पर बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित करने की बजाय वहां तक पहुंचने की प्रक्रिया का आनंद लेना चाहिए. अकसर हम अपनी नजर से भटक जाते हैं और बहुत ज्यादा सफलता पर भरोसा कर लेते हैं. हम भूल जाते हैं कि हमें कार्य की पूरी प्रक्रिया का आनंद लेने के बजाय परिणामों पर ध्यान केंद्रित नहीं करना हैं, जबकि जानते हैं कि परिणाम अनिश्चित होता है. याद रखें उम्मीदें रखना या आशावादी होना गलत नहीं है, लेकिन कार्य किये बिना तो परिणाम घातक ही हो सकता है.

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय

नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

तथा शरीराणि विहाय जीर्णा

न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।

यह कहना बहुत आसान है कि बहुमुखी प्रतिभा और संजोग सफलता की कुंजी हैं, लेकिन किसी भी व्यवसायी के लिए सबसे बड़ा सबक यह है कि अगर वह हर परिवर्तन को जल्द से जल्द अपनाएं. अपनी शुरुआती सोच में ही उलझकर न रह जाये. इसके लिए नई चीज तलाशना,  नये अवसरों को अपने अनुकूल बनाना सीखें. एक यात्री की तरह अपना मार्ग प्रशस्त करना सीखे. ना कि जहां वह जाएं बस वहां का बन कर रह जाएं.

किसी एक बात पर अड़े मत रहो, खुले दिमाग से एक स्पंज की तरह अनुभवों को शोषित करने के लिए हमेशा तत्पर रहो. बदलाव के लिए आप जितनी शीघ्रता से उसके अनुरूप खुद को बदलते है, उतना ही आपके लिए अच्छा होता है. ध्यान रहे बदलाव भी स्थाई है. ठीक उसी तरह जिस प्रकार आत्मा एक देह छोड़कर दूसरे देह में प्रवेश करती है.

क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः

क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः |

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति || ६३ ||

व्यवसायियों के लिए बहुत जरूरी है कि वे अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें. क्योंकि क्रोध के कारण हमारी क्षमता हम से दूर चली जाती है और हम भ्रम में उलझ कर रह जाते हैं. क्रोध से उपजे भ्रम और अव्यवस्था से स्मृति की हानि होती है. इसके साथ-साथ क्रोध व्यक्ति को उसके उद्देश्य और लक्ष्यों से दूर करता जाता है. इसलिए जरूरी है कि व्यक्ति क्रोध से खुद को दूर रखे. इस समस्या का एक सरल समाधान लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना है. साथ ही जरूरी है कि अपने धैर्य को कभी कमतर न आंकें.

तस्मादसक्त: सततं कार्यं कर्म समाचर |

असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुष: || 19||

अपने जीवन में इस आदत को अपनाइये, जहां आप किसी वस्तु या व्यक्ति विशेष से ज्यादा अटैच न हों, भले ही यह अटैचमेंट आपको शक्ति देता है. यह आपकी कमजोरी बन सकती है. यह आपकी यात्रा को भी डिफिकल्ट बना सकता है. आपको बाजार में होने वाले हर गतिविधियों पर पैनी नजर रखनी होगी, लेकिन इसके लिए आप जूनूनी न हों.

धूमेनाव्रियते वह्नियर्थादर्शो मलेन च

यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्

इस सरल श्लोक का गूढ़ अर्थ है. यह परहेज एक अभिशाप की तरह है, जो एक शुद्ध आवरण की तरह दिखता है जो अक्सर भ्रामक भी हो सकता है. उदाहरण स्वरूप आग के ऊपर का मंडराता धुआं हमें आग के पास जाने से रोकता है. अगर दर्पण धूल-मिट्टी से ढका होता है तो बिना साफ किये हम उसमें नहीं देख सकते कि क्या प्रतिबिंब हो रहा है, इसी तरह से ज्ञान पर इच्छा रूपी धूल को हटा कर ही हम अपने ज्ञान को दर्शा सकते हैं, और तभी ज्ञान को आत्मसात किया जा सकता है. यद्यपि यह इतना आसान नहीं जितना दिखता है, लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति वही है, जो जानता है कि क्या छोड़ना है और क्या चयन करना है.