क्या आप नया बिजनेस शुरू कर रहे हैं? तो फिर सबसे पहले Fund के इस फंडे को समझिये
आपकी ख्वाहिश है एक बड़ा बिजनेसमैन बनने की और आपने बिजनेस की रूप रेखा भी तैयार कर ली है, लेकिन समस्या यह है कि आपके पास फंड नहीं है. हम आपको कुछ ऐसे प्लेटफॉर्म के बारे में बतायेंगे, जिनसे मदद लेकर आप अपनी ख्वाहिशों को पूरी कर सकते हैं. Most Successful Business Ideas: ये 5 बिजनेस हैं बेहद सफल, शुरू कर लाखों में करें कमाई
आप बिजनेस शुरु करने जा रहे हैं या कर रहे हैं अथवा काफी दिनों से चला रहे हैं, हर व्यवसायी को पैसे की जरूरत है. सवाल उठता है पैसे कहां से आयेंगे. वस्तुतः व्यवसाय के चार स्वरूप होते हैं, पहला स्टार्टअप स्टेज (Startup Stage), दूसरा अर्ली स्टेज (Early Stage), तीसरा ग्रोथ स्टेज (Growth Stage) और चौथा मैच्योरिटी स्टेज (Maturity Stage)
स्टार्टअप स्टेज (Startup Stage)
इस स्टेज में तीन एफ (F) आते हैं, पहला फैमिली, दूसरा फ्रेंड तीसरा Fool. यानी आप कोई व्यवसाय शुरु करते हैं तो परिवार या मित्रों से पूंजी की व्यवस्था करते हैं, तीसरा फूल यानी किसी को मूर्ख बनाकर कि आपके पास एख बड़ा प्रोजेक्ट है, आप फंड लगाओगे तो आप भी मालामाल हो जाएंगे. अगला एंजिल स्टेज होता है. इस स्टेज पर थोड़ी मदद मिलती है, बदले में थोड़ा हिस्सा दिया जाता है. इसमें कोशिश होती है कि आपको आनेवाली मुश्किलों से उबारा जाये. इसके बाद आता है वेंचर कैपिटल (Venture Capitals) और प्राइवेट इक्विटी (Private Equity). इन दिनों ऐसे ही इन्वेस्टर पर व्यवसाय का दारोमदार टिका हुआ है.
वेंचर कैपिटल बनाम प्राइवेट इक्विटी
यहां हम वेंचर कैपिटल (VC) और प्राइवेट इक्विटी (PE) की बात करेंगे. इन दोनों में सबसे बड़ा अंतर यह है कि वीसी आपके लिए सीड कैपिटल की व्यवस्था करता है तो पीई आपके लिए ग्रोथ कैपिटल लाता है. दोनों में बहुत फर्क है. आपके पास केवल आइडिया है तो वीसी आपकी मदद करता है. वह आप पर भरोसा करके पैसे लगाता है. लेकिन पीई आपके बिजनेस में प्रॉफिट दिखने के बाद ही पैसे लगायेगा. वह आपके पांच साल के टर्न ओवर में कंपाउंड एंगल ग्रोथ रेट और आपकी स्थिरता देखेगा.
वीसी इन्वेस्टर हर व्यवसाय में रुचि नहीं रखता. वह सॉफ्टवेयर, टेक्नोलॉजी और बायोटेक में फोकस करता है, लेकिन पीई इन्वेस्टर हर स्टेबल बिजनेस में रुचि लेता है. वह मैन्युफैक्चरिंग, रिटेल, आईटी किसी भी इंडस्ट्री में पैसे इन्वेस्ट कर सकता है. उसे आपके बिजनेस में स्टेबिलिटी चाहिए. वीसी हाई रिस्क इन्वेस्टमेंट में काम करता है. वह बिजनेस स्टार्ट हुए बिना पैसे लगा देता है, लेकिन वह कम पैसे इन्वेस्ट करता है. जबकि पीई अधिक निवेश करता है. वीसी की सोच होती है कि कंपनी फटाफटा बड़ी हो जाये. उसका फोकस प्रॉफिट पर नहीं होता, उसे सेल्स चाहिए. जबकि पीवी को सेल नहीं प्रॉफिट चाहिए. वह टॉप लाइन पर फोकस करेगा. जबकि पीई बॉटम लाइन पर नजर रखता है. वह फाइनल प्रॉफिट देखता है. वीसी फोकस करेगा कि मार्केट शेयर बड़ा हो जाये, पीई फोकस करेगा प्रॉफिट शेयर बड़ा हो जाये.
जमीन आसमान का फर्क है पीई और वीसी में
पीई को बाहर निकलने की जल्दी नहीं होती, लेकिन वीसी की सोच विपरीत है. वह सोचता है कि उसके क्लाइंट ने नई कंपनी चालू की, शायद उसके पास अच्छी टैकनोलजी है. वह उसकी वैल्यूएशन एक करोड़ करके तीस लाख देता है, और तीस प्रतिशत इक्विटी लेता है. उसके अनुसार शीघ्र ही यह कंपनी एक करोड़ से सौ करोड़ की हो जायेगी, तब उसका शेयर तीस करोड़ हो जायेगा. तीस लाख के बदले तीस करोड़ हासिल करता है. इसके बाद दूसरा इन्वेस्टर लाएगा, और अपनी टोपी उसे पहनाकर अपना नेट प्रॉफिट लेकर अलग हो जायेगा.
नुकसान की भरपाई कुछ कंपनियों से की जाती है
वीसी सौ कंपनियों में काम करता है. उसे पता है कि 100 में 90 फेल होंगे ही, लेकिन दस जो बड़ी हिट होनेवाली है, वह उसकी न केवल 90 कंपनियों के नुकसान की भरपाई करेगी बल्कि आनेवाली 200 कंपनियों का पैसा एडवांस में कमा कर दे देगा. वीसी शुरु से ही उस कंपनी पर फोकस करता है, जो तेजी से बड़ी होती है, जिसकी अगली वैल्यूएशन भी बहुत बड़ी हो जायेगी.
दोनों का एक ही लक्ष्य है प्रॉफिट
पीई रिस्क नहीं लेता, वह स्टेबिलिटी चाहता है. यद्यपि दोनों का एक ही फोकस होता है, कि अपने-अपने इन्वेस्टमेंट की वैल्यू को सुरक्षित कर सके. दोनों का एक ही लक्ष्य होता है कि जितना इन्वेस्ट किया है उसका मार्केट का वैल्यू बड़ा हो जाये, ताकि जब बाहर निकलें तो प्रॉफिट लेकर ही निकलें. दोनों का ही काम एक जैसा ही है, बस टाइमिंग में फर्क होता है.