धीरूभाई अंबानी Success Story: पकोड़े बेचने से लेकर अरबों की कंपनी खड़ी करने तक का सफर, जानिए कैसे रखी रिलायंस इंडस्ट्रीज की नींव

सपने हमेशा बड़े होने चाहिए, प्रतिबद्धता हमेशा गहरी होनी चाहिए और प्रयास हमेशा महान होने चाहिए। धीरूभाई अंबानी के द्वारा कही गई ये बातें पूरी तरह उनके जीवन पर फीट बैठती है। धीरूभाई अंबानी से आज हर कोई परिचित है। उनकी ख्याति केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में फैली हुई है। धीरूभाई अंबानी को बिज़नेस की दुनिया का बेताज बादशाह कहा जाता है। धीरूभाई अंबानी का नाम उन सफल बिजनेसमैन की लिस्ट में शुमार था जिन्होंने अपने दम पर सपने देखे और उन्हें हकीकत में बदलकर पूरी दुनिया के सामने यह साबित कर दिखाया कि अगर खुद पर कुछ करने का विश्वास हो तो निश्चित ही सफलता आपके कदम चूमती है। पकोड़े बेचने का काम शुरू करने से लेकर अरबों की कंपनी खड़ी कर देने का धीरूभाई अंबानी का यह सफर आइए जानते हैं।

धीरूभाई अंबानी का जन्म 28 दिसंबर 1932 को गुजरात के छोटे से गांव चोरवाड़ में हुआ था। उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज की नींव रखी थी। धीरूभाई का पूरा नाम धीरजलाल हीराचंद अंबानी है। उनके पिता एक शिक्षक थे। धीरूभाई अंबानी के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। जिसकी वजह से धीरूभाई अंबानी ने केवल 10वीं तक पढ़ाई की थी। अपने घर की हालात को देखते हुए परिवार का गुजर-बसर करने के लिए वो अपने पिता के साथ पकौड़े बेचने जैसे छोटे-मोटे काम करने लगे। मात्र 17 साल की उम्र में पैसे कमाने के लिए धीरूबाई 1949 में अपने भाई रमणिकलाल के पास यमन चले गए। यहां उन्हें 'ए. बेस्सी एंड कंपनी के एक पेट्रोल पंप पर काम किया। यहां उनकी तनख्वाह केवल 300 रुपये प्रति माह थी। लेकिन कुछ ही समय में कंपनी ने धीरूभाई की काबिलियत और काम को देखते हुए उन्हें फिलिंग स्टेशन में मैनेजर की पोस्ट दे दी।

धीरूभाई अबांनी हमेशा बड़ा आदमी बनने का सपना देखा करते हैं। यमन में काम करने के दौरान ही वो काम करने वाले कर्मचारियों को चाय महज 25 पैसे में मिलती थी, लेकिन धीरुभाई वो 25 पैसे की चाय न खरीदकर एक बड़े रेस्टोरेंट में 1 रुपए की चाय पीने जाते थे। वो ऐसा इसलिए करते थे, ताकि उस रेस्टोरेंट में आने वाले बड़े-बड़े व्यापारियों की बात सुन सकें, और बिजनेस की बारीकियों को समझ सकें। उसी दौरान यमन की आजादी के लिए आंदोलन की शुरुआत हो गई, हालात इतने बिगड़ गए कि यमन में रह रहे भारतीयों को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। ऐसे में धीरूभाई अंबानी भी अपनी नौकरी छोड़ भारत वापस लौट आए। घर लौटने के बाद 500 रुपये लेकर वो मुंबई के लिए रवाना हो गए।

 

बिज़नेसमैन बनने का सपना देखने वाले धीरूभाई ने बिजनेस करने का फैसला लिया। हांलाकि किसी भी बिजनेस को शुरु करने के लिए निवेश करने की जरूरत होती हैं और वो धीरुभाई के पास नहीं थी। जिसके बाद उन्होंने अपने चचेरे भाई के साथ पॉलिएस्टर धागे और मसालों के आयात-निर्यात के बिज़नेस की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने महज 15 हजार रुपए से रिलायंस कार्मशियल कॉरपोरेशन की शुरुआत मस्जिद बंदर के नरसिम्हा स्ट्रीट पर एक छोटे से ऑफिस के साथ की थी। यहीं से रिलायंस कंप़नी की सफलता की कहानी लिखनी शुरू हुई थी।

शुरूआती दौर में बिजनेस टाइकून धीरूभाई अंबानी का इरादा पॉलिएस्टर यार्न को आयात करने और मसाले निर्यात करने का था। , धीरूभाई अंबानी और चंपकलाल दमानी दोनों का स्वभाव और  बिजनेस करने का तरीका एक-दूसरे से बिल्कुल अलग था इसी वजह से साल 1965 में धीरूभाई अंबानी ने चम्पकलाल दमानी के साथ बिजनेस में पार्टनरशिप खत्म कर दी और अपने दम पर बिजनेस की शुरुआत की। धीरूभाई अंबानी ने किया रिलायंस टेक्सटाइल्स की शुरुआत की। धीरे-धीरे धीरूभाई अंबानी को कपड़े के व्यापार की अच्छी खासी समझ हो गई थी। इस बिज़नेस में अच्छे अवसर मिलने की वजह  से उन्होंने साल 1966 में अहमदाबाद के नैरोड़ा में एक कपड़ा मिल की स्थापना की। यहां पर कपड़ों को बनाने में पोलियस्टर के धागों का इस्तेमाल किया गया और फिर धीरूभाई अंबानी ने इस ब्रांड का नाम ‘विमल’ ब्रांड रखा।

इसके साथ ही  1980 के दशक में धीरूभाई अंबानी ने पॉलिएस्टर फिलामेंट यार्न के निर्माण के लिए सरकार से लाइसेंस ले लिया था। इसके इसके बाद धीरूभाई अंबानी लगातार सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए और उन्होनें कभी अपने करियर में पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने दुनिया भर में रिलायंस के कारोबार का विस्तार किया। कभी एक कमरे से शुरु हुई इस कंपनी में साल 2012 तक करीब 85 हजार कर्मचारी काम कर रहे थे, दुनिया की 500 सबसे अमीर और विशाल कंपनियों में रिलायंस को भी शामिल किया गया था। धीरूभाई अंबानी को एशिया के टॉप बिजनेसमैन के लिस्ट में भी शामिल किया जा चुका है।

अपनी सफलता की कहानी लिखने और अपने बिज़नेस की बागडोर अपने दोनों बेटों अनिल और मुकेश अंबानी को देने के बाद धीरुभाई अंबानी ने  6 जुलाई, साल 2002 को दम तोड़ दिया। उनकी मौत का कारण हार्ट अटैक था।  धीरुभाई अंबानी ने तमाम संघर्षों को झेलकर अपने जीवन में सफलता की कहानी (Success Story) लिखी है। उन्होंने हर किसी को अपने काम से प्रेरित (Motivate) किया है। धीरूभाई अंबानी की यह कहानी सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspirational) है। हर किसी को प्रेरणा (Inspiration) लेने की जरुरत है।

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