Sardar Vallabhbhai Patel: ऐसे ही कोई भी लौह पुरुष नहीं बन जाता है, जानें वल्लभ भाई पटेल से सरदार वल्लभ भाई बनने तक की कहानी

भारत देश को अनेकता में एकता के रूप में देखा जाता है और इस देश को एकता में पिरोने के लिए कई महान विभूतियों ने कड़ी मेहनत की है. इस एकता को बनाए रखने के लिए अगर उन विभूतियों को बड़ा बलिदान भी देना पड़ा तो उन्होंने जरां भी गुरेज़ नहीं किया और हस्ते-हस्ते हर बड़ा बलिदान कर दिया. ऐसी ही एक महान शख़्सियत है सरदार वल्लभ भाई पटेल, जिन्हें भारत के लौह पुरुष के रूप में भी जाना जाता है. चलिए जानते हैं कि वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि कैसे मिली और देश को अखण्ड भारत बनाने में उनका क्या और कैसे योगदान रहा.

सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म गुजरात के नडियाद में 31 अक्टूबर, सन 1875 में हुआ था. उनके पिता का नाम झावेर भाई और माता का नाम लाडबा पटेल था.  गुजराती परिवार से ताल्लुक रखने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल अन्याय के खिलाफ सख्त शब्दों में आलोचना करते थे और अपनी आवाज़ हमेशा ही उठाते थे. ऐसे कई उदारहरण है जब सरदार पटेल ने न्याय के लिए अपनी आवाज़ उठायी.



स्कूल में आंदोलन:

सरदार पटेल को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी समय लगा. वह 22 साल के थे जब उन्होंने 10वीं की परीक्षा पास की थी. एक बार स्कूल में वल्लभभाई पटेल ने अपने अध्यापको को किताबों को बेचते हुए देखा. स्कूल में अध्यापक बच्चों को बाहर से किताबें न खरीद कर उनसे खरीदने की सलाह दिया करते थे. सरदार पटेल ने इसके विरूद्ध अपनी आवाज़ उठायी और मनमाने दामों पर अध्यापकों द्वारा किताबें बेचने के व्यापार पर रोक लगवा दी.

ऐसे की वकालत:

सरदार वल्लभभाई की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लेकिन सरदार पटेल वकालत करना चाहते थे. उस समय ऐसा हुआ करता था कि कोई व्यक्ति अगर चाहे तो व्यक्तिगत रूप से वकालत की पढ़ाई कर सकता है.  सरदार पटेल ने अपने परिचित से कुछ किताबों को उधार लेकर घर पर ही पढ़ना शुरू कर दिया. आम तौर पर सरदार पटेल के पास कॉलेज जाने का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन पटेल इतने मेहनती थे कि उन्होंने 36 महीने की वकालत की पढ़ाई को सिर्फ 30 महीनों में ही पूरा कर लिया था. सरदार पटेल उच्च स्तरीय वकील थे और अपनी दलिलों के दम पर वह किसी भी न्यायधीश को विचार-विमर्श करने पर मजबूर कर दिया करते थे.

गांधी से ऐसे हुए प्रभावित: शुरुआती दिनों में सरदार पटेल, महात्मा गांधी की आंदोलनों के प्रेरित नहीं हुए लेकिन गांधी के चम्पारण सत्याग्रह ने सरदार पटेल का काफी प्रभावित किया. सरदार पटेल ने इसी आन्दोलन के चलते महात्मा गांधी के मुलाकात की और उनके साथ आज़ादी की लड़ाई का हिस्सा बन गए.

जब अंग्रेजों का भी सर चकरा गया:

सरदार पटेल ऐसी रणनीतियां अपनाते थे, जिससे हर कोई दंग रह जाता था. अंग्रेजों द्वारा जब देश के किसानों पर मनमाने तरीके से जब कर थोपा जा रहा था देश के किसानों ने महात्मा गांधी से मदद की गुहार लगायी. गांधी ने सरदार पटेल से इस विषय पर राय मांगी. सरदार पटेल ने बड़ी ही होशियारी के साथ इस मसले को सुलझाया. जिस भी दिन अंग्रेज किसी किसान के यहां पर जमीन को हड़पने जाते थे, उसी दिन सरदार पटेल उस किसान को कुछ दिन के लिए गांव से बाहर भेज दिया करते थे. किसान के बाहर होने की वजह से किसान कागजों पर हस्ताक्षर नहीं कर पाता था और इस तरह से अंग्रेज किसी किसान की जमीन पर कब्जा नहीं कर पाते थे. इसके बाद तंग आकर अंग्रेजों ने मनमाने तौर पर कर वसुलना बंद किया और करों की दर को 22 प्रतिशत से 6 प्रतिशत कर दिया.

त्याग देने से नहीं हटे पीछे:

सरदार वल्लभभाई पटेल त्याग करने से भी पीछे नहीं हटते थे. ऐसे कई उदाहरण हैं जब उन्होंने देश और अपने लोगों के लिए बड़ी उपलब्धियों को भी छोड़ने से पहले एक भी बार नहीं सोचा. कांग्रेस के अधिवेशन में सरदार पटेल को बहुमत मिला लेकिन पंडित जवाहर लाल नेहरू को बिना मतों के ही संतोश करना पड़ा था. गांधी जानते थे कि नेहरू इस बात काफी परेशान हैं. इसलिए उन्होंने सरदार पटेल को एक खत के माध्यम से अधिवेशन से अपना नाम वापस लेने के लिए कहा. सरदार पटेल ने ऐसा ही किया बिना विचार-विमर्श किए अपना नाम वापस ले लिया.

सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारत के उप-प्रधानमंत्री और ग्रह मंत्री के रूप में देश को अपनी सेवा प्रदान की है. उन्होंने अपनी कूटनीतिक रणनीतियों के बल पर एक देश को एकता मे पिरोने का जो काम किया है, उसे शायद ही कोई दूसरा व्यक्ति कभी कर पाता. सरदार पटेल की रणनीतियों का ही नतीज़ा है आज हम अखण्ड भारता का हिस्सा हैं अन्यथा भारत में ही कई भारत निवास हुआ होता. सरदार पटेल को लौह पुरुष की उपाधि से भी नवाज़ा जाता है.

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