भगवान श्री कृष्ण ने सबसे पहले किया था सरस्वती मां का पूजन, बसंत पंचमी पर जानें क्यों की जाती है सरस्वती पूजा

भारत त्योहारों का देश हैं। यहां हर महीने, हर दिन कोई ना कोई त्योहार किसी ना किसी राज्य में विशेष रुप से मनाया जाता है। भारत के प्रसिद्ध त्योहारों में से एक बसंती पंजमी का त्योहार है जिसे सरस्वती पूजा भी कहा जाता है। इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की अराधना की जाती है। इस दिन मां सरस्वती की उत्पति हुई थी। जिसके उपलक्ष्य में इस त्योहार को मनाया जाता है। इस त्योहार को मनाने के पीछे कई मान्यताएं छिपी है। बसंत पंचमी प्रत्येक वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। इस त्योहार को ऋतुओं के राजा बसंत के आगमन के तौर पर भी देखा जाता है। आइए जानते हैं इस त्योहार से जुड़ी कुछ मान्यताएं और कहानियां।

बहुत कम लोग जानते हैं कि माँ सरस्वती जी की आराधना सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण जी ने की थी। उन्होंने सबसे पहले सरस्वती मां की पूजा की थी। इस बात के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। मान्यतानुसार माँ सरस्वती ने जब श्रीकृष्ण को देखा तो उनके रूप पर इस कद्र मोहित हो गईं कि उन्हें पति के रूप में पाने की इच्छा करने लगीं। भगवान कृष्ण को इस बात का पता चलने पर उन्होंने कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित हैं। सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए श्रीकृष्ण जी ने वरदान दिया कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखने वाला मनुष्य माघ मास की शुक्ल पंचमी को आपकी पूजा करेगा। श्रीकृष्ण जी ने खुद अपने इस वरदान के बाद सबसे पहले माँ सरस्वती जी की पूजा की।

ऐसे हुई थी मां सरस्वती की उत्पति

सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य की रचना की। लेकिन वो अपनी इस सर्जना से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, जिससे कंपन के साथ वृक्षों में से एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री उत्पन हुई। जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं|

जिस तरह सारे देवों और ईश्वरों में जो स्थान श्रीकृष्ण का है वही स्थान ऋतुओं में बसंत का है। यह स्वयं श्रीकृष्ण ने इस बात को स्वीकार किया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जिस तरह सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही सभी देवता, नाग, राक्षस, गंधर्व आदि एक माह के लिए पृथ्वी आते हैं। उसी प्रकार सूर्य के कुम्भ राशि में प्रवेश से ॠतुओं के राजा बसंत का पर्व रतिकाम महोत्सव का शुरुआत होता है। वैसे तो बसंतऋतु की पूरी अवधि महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका आरम्भ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि, इस दिन ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती का प्राकट्यपर्व भी मनाया जाता है।

बसंत ऋतु को मधुमास भी कहा जाता है इसके आरम्भ होने के साथ सर्दी का समापन शुरू हो जाता है। इस मौसम में संसार के लगभग सभी वृक्ष पुरानी पत्तियों को त्यागकर नई पत्तियों व पुष्पों को जन्म देते हैं।  मां शारदा यानी सरस्वती मां माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को प्रकट हुई थीं, इस वजह से उस तिथि को वसंत पंचमी या श्री पंचमी कहा जाने लगा। उन्होंने अपनी वीणा से संगीत की उत्पत्ति की, जिस वजह से वह कला और संगीत की देवी कही जाती हैं। उनके भक्त मां शारदा को वाग्देवी, बागीश्वरी, भगवती, वीणावादनी आदि नामों से पुकारते हैं। उनको पीला रंग काफी प्रिय है। पूजा के समय में उनको पीली वस्तु और पुष्प अर्पित किया जाता है। इस दिन मुख्य रुप से पीले वस्त्रों को धारण किया जाता है। मां सरस्वती की पूजा विशेषतौर पर विद्या और संगीत को अर्जित करने के लिए की जाती है।

बसंत पंचमी की पूजा विधि

  • बसंत पंचमी में प्रातः उठ कर बेसनयुक्त तेल का शरीर पर उबटन करके स्नान करना चाहिए। इसके बाद स्वच्छ पीतांबर या पीले वस्त्र धारण कर मां सरस्वती के पूजन की ‍तैयारी करना चाहिए।
  • माघ शुक्ल पंचमी को उत्तम वेदी पर वस्त्र बिछाकर अक्षत (चावल) से अष्टदल कमल बनाए और उसके अग्रभाग में गणेशजी स्थापित करें।
  • पहले भाग में बसंत स्थापित करें। बसंत, जौ व गेहूं की बाली के पुंज को जल से भरे कलश में डंठल सहित रखकर बनाया जाता है|
  • इसके बाद सबसे पहले गणेशजी का पूजन करें और फिर पहले भाग में स्थापित बसंत पुंज के द्वारा रति और कामदेव का पूजन करें। इसके लिए पुंज पर अबीर आदि के पुष्पों माध्यम से छींटे लगाकर वसंत सदृश बनाएं|
  • इसके बाद कामदेव का ध्यान करके विविध प्रकार के फल, पुष्प और पत्रादि समर्पण करें तो गृहस्थ जीवन सुखमय होकर प्रत्येक कार्य को करने के लिए उत्साह प्राप्त होता है।
  • सामान्य हवन करने के बाद केशर या हल्दी मिश्रित हलवे की आहुतियां दें।
  • बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती के पूजन के साथ-साथ भगवान विष्णु के पूजन का भी विधान है।

कलश की स्थापना करके गणेश, सूर्य, विष्णु तथा महादेव की पूजा करने के बाद मां सरस्वती का पूजन करना चाहिए।

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