जो लोग सपने देखते हैं उन्हीं के सपने पूरे होते हैं। सपने पूरे करने के लिए उन्हें देखना जरुरी है। अमीर बनने के लिए ये जरूरी नहीं कि आप के पास बहुत बड़ी डिग्री हो या आप इंजीनियर या डॉक्टर ही हों। सफलता पाने के लिए आपके पास बस हुनर और आत्मविश्वास होना चाहिए। इस आत्मविश्वास और हुनर के साथ आप बड़ी से बड़ी सफलता को प्राप्त कर सकते हैं। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है तीरंदाज दीपिका कुमार। जिन्होंने ना केवल अपनी सफलता की कहानी लिखी है बल्कि तीरंदाजी के खेल में भारत का नाम गर्व से रोशन किया है। एक छोटे से गांव से ओलंपिक तक का सफर तय करने वाली दीपिका कुमारी की कहानी काफी प्रेरणादायी (Inspirational) है। आइए जानते हैं उनके संघर्ष और सफलता की कहानी (Success Story)।

दीपिका कुमारी झारखंड के जमशेदपुर की रहने वाली हैं। दीपिका का जन्म 13 जून 1994 को झारखण्ड की राजधानी रांची में हुआ था। तीरंदाज दीपिका कुमारी ने चैंपियन बनने की राह पर आगे बढ़ने की शुरुआत अपने रिक्शाचालक पिता से दस रुपये लेकर की थी। दीपिका के पिता जमशेदपुर में रिक्शा चालक थे तथा उनके पास अपनी बेटी का तीरंदाज बनने का सपना पूरा करने के लिए ना पर्याप्त समय था ना पैसा। लेकिन दीपिका बचपन से ही तीरंदाज बनना चाहती थी।

बचपन से ही दीपिका को तीरंदाजी से बहुत लगाव था। दीपिका बांस से धनुष और बाण बनाया करती थी। वो बांस से बने धनुष से तीरंदाजी की प्रेक्टिस करती थीं।  अपनी प्रतिभा को और ज्यादा निखारने के लिए दीपिका ने अपने गांव की एक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। इस प्रतियोगिता की फीस 10 रुपये थी। उनके पिता के पास उन दिनों 10 रुपये भी बेटी को देने के लिए नहीं थे क्योंकि उनका परिवार बहुत गरीब थी। लेकिन दीपिका हार मानने वालों में से नहीं थी। दीपिका जंगल में जाकर आम के फल पर निशाना लगाकर तीरंदाजी का अभ्यास करती थी।

धीरे-धीरे दीपिका एक तीरंदाज के रुप में उभर कर सामने आने लगी। दीपिका किसी जिला स्तरीय टूर्नामेंट में भाग लेना चाहती थी लेकिन उनके पिता ने साफ मना कर दिया था। दीपिका ने हार नहीं मानी और पिता को उनकी जिद्द के आगे झुकना पड़ा। दीपिका के पिता शिवनारायण कहते है कि मैने इसे 10 रुपये प्रतियोगिता में भाग लेने को दिए थे और ये लोहारडंगा में खेलों में भाग लेने चली गयी और वहां से जीत कई आई।

दीपिका को एक टूर्नामेंट में शामिल होने के लिए धनुष की जरुरत थी लेकिन धनुष की कीमत 2 लाख थी। आखिरकार वो उस प्रतियोगिता में भाग नहीं ले पाई। लेकिन उनके पिता ने उनकी इस इच्छा को पूरा किया। जिसके बाद दीपिका का तीरंदाजी स्कूल में दाखिल हो गया। इसके बाद दीपिका ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दीपिका ने भारत का नाम राष्ट्रमंडल खेलों में भी रोशन किया है। उन्होंने व्यक्तिगत वर्ग के साथ टीम के रुप में भी स्वर्ण पदक जीते हैं।

दीपिका ने राष्ट्रमंडल खेल और ऑलपिंक में भी भाग लिया था। दीपिका के लिए तीरंदाज का यह पहला टूर्नामेंट था जहां से उनके स्टार बनने की शुरुआत हुई। दीपिका ने अपने पिता को भी काफी मुश्किलों के साथ मनाया था। आज उनके पिता भी मानते हैं कि उनकी बेटी सही थी।

2015 में आयोजित हुए तीरंदाजी विश्व कप में दीपिका कुमारी ने कांस्य पदक जीता था। इससे पहले भी वो कई बार रजत पदक अपने नाम कर चुकीं है। दीपिका वर्ल्ड कप में अपनी क्षमता और हुनर का लोहा मनवा चुकी हैं। दीपिका ने कभी हार ना मानने के जज्बे के साथ अपनी सफलता की कहानी (Success Story) लिखी है। दीपिका का जीवन आज के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत (Inspiration) है।

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