अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें मिल कर काम कर रही है और कदम से कदम मिला रही हैं. इसी कड़ी में अब एक और फैसला भी जुड़ने जा रहा है. दरअसल बांस उद्योग को नई ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए पूरे देश में कई पहल की जा रही है. इसी कड़ी में इस बार खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने मरुस्थलीकरण को कम करने और आजीविका प्रदान करने के लिए एक बहुउद्देशीय ग्रामीण उद्योग सहायता शुरू की गई है.

इतना ही नहीं राजस्थान के उदयपुर जिले के निकलमांडावा के आदिवासी गांव में शुरू की जाने वाली “सूखे भू-क्षेत्र पर बांस मरु-उद्यान” (बोल्ड) नाम की अनूठी परियोजना, देश में अपनी तरह की पहली परियोजना है. इसके लिए विशेष रूप से असम से बांस की विशेष प्रजातियां लाई गई हैं, जिसमें बंबुसा टुल्डा और बंबुसा पॉलीमोर्फा के 5,000 पौधों को ग्राम पंचायत की 25 बीघा (लगभग 16 एकड़) खाली शुष्क भूमि पर लगाया गया है. इस तरह केवीआईसी ने एक ही स्थान पर एक ही दिन में सर्वाधिक संख्या में बांस के पौधे लगाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया है.

आपको बता दें कि परियोजना बोल्ड, जो शुष्क व अर्ध-शुष्क भूमि क्षेत्रों में बांस-आधारित ग्रीन बेल्ट बनाने का प्रयास करती है, देश में भूमि के कटाव को कम करने व मरुस्थलीकरण को रोकने की दिशा में प्रयास है. यह आयोजन खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित खादी बांस महोत्सव का हिस्सा है. खादी ग्रामोद्योग प्राधिकरण इस साल अगस्त तक गुजरात के अहमदाबाद जिले के धोलेरा गांव और लेह-लद्दाख में भी इसी तरह की परियोजना शुरू करने वाला है. इस योजना के तहत 21 अगस्त से पहले कुल 15,000 बांस के पौधे लगाए जाएंगे.

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इस योजना के अंतर्गत एक खास बात और भी है. खादी ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने कहा, “इन तीन स्थानों पर बांस उगाने से देश की भूमि क्षरण दर को कम करने में मदद मिलेगी, साथ ही सतत विकास और खाद्य सुरक्षा भी मिलेगी. वहीं सांसद अर्जुन लाल मीणा ने कहा कि उदयपुर में बांस पौधारोपण कार्यक्रम से इस क्षेत्र में स्वरोजगार को बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने आगे कहा कि इस तरह की परियोजनाओं से क्षेत्र में बड़ी संख्या में महिलाओं और बेरोजगार युवाओं को कौशल विकास कार्यक्रमों से जोड़कर लाभ होगा.

अब हम आपको बांस की कुछ खासियत बताने का प्रयास करते हैं. बताते चले कि बांस बहुत तेजी से बढ़ते हैं और लगभग तीन साल की अवधि में उन्हें काटा जा सकता है. इन्हें ज्यादा देखभाल की जरूरत भी नहीं पड़ती है और आजीविका की दृष्टि से भी फायदेमंद  होते हैं. बांस की बोतल, बांस के कप-प्लेट, चम्मच, कांटा, थाली, स्ट्रॉ जैसे उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है. बांस को पानी के संरक्षण और भूमि की सतह से पानी के वाष्पीकरण को कम करने के लिए भी जाना जाता है, जो शुष्क और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण विशेषता है.

इस योजना की एक और खास बात है, जिसका सीधा असर किसानों को पर होगा और उन्हें लाभ मिलेगा. सरकार बांस उद्योग को बूस्ट देने के लिए राष्ट्रीय बंबू मिशन चला रही है. इस योजना के तहत सरकार किसानों को एक बांस का पौधा लगाने पर 120 रुपये का अनुदान प्रदान करेगी, अगर कोई व्यक्ति इसका बिजनेस करना चाहता है, तो सरकार के द्वारा सब्सिडी के तौर पर अनुदान दिए जाने की व्यवस्था भी की गई है.