Fly Light Model: एक नॉन व्यवसायी जब कोई व्यवसाय शुरु करने की योजना बनाता है तो उसके दिलो-दिमाग में यही बात घुमड़ती है कि व्यवसाय शुरु करने के लिए तो बहुत पैसा चाहिए! जी नहीं, वे दिन लद गए, जब कोई व्यवसाय शुरु करने अथवा छोटे व्यवसाय को बड़ा करने के लिए भारी पूंजी निवेश करनी पड़ती थी. आज नये-नये प्रौद्योगिकी (Technology) ने व्यापार संबंधी सभी मिथकों एवं भ्रांतियों को खारिज कर दिया है. आज जो भी बड़ी-बड़ी ग्लोबल टेक्निकल कंपनियां या नॉन टेक्निकल कंपनियां विकास कर रही हैं, वे बहुत ज्यादा पैसे इन्वेस्ट नहीं कर रहे हैं. Food Processing Business: फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना के तहत यूपी में मिल रही सब्सिडी

क्या है एसेट लाइट मॉडल (Asset Light Model)

एक पतंग पर अगर दो किलो का वजन रख दिया जाये तो पतंग नहीं उड़ेगी क्योंकि केवल हलकी पतंग ही हवा में ऊपर उड़ सकती है. संक्षेप में कहें तो यही है एसेट लाइट मॉडल. यानी फ्लाई लाइट मॉडल तो क्या आप चाहते हैं कि आपकी पतंग (बिजनेस) खूब ऊंचाइयों पर उड़े? आइये इसके कुछ उदाहरण पर नजर डालते हैं.

वॉट्सऐप: वॉट्सऐप दुनिया की सबसे बड़ी मैसेजिंग कंपनी है, लेकिन उनका अपना एक भी सर्वर नहीं है, दुनियाभर में उनके स्टाफ की कुल संख्या भी 200 से कम है, यानी बहुत कम इनवेस्ट करके भी बेशुमार लाभ अर्जित कर रहे हैं.

उबर: उबर दुनिया की सबसे बड़ी टैक्सी सर्विस है, लेकिन ना ही उनकी अपनी एक टैक्सी इसमें है ना ही ड्राइवर. यह भी फ्लाई लाइट बिजनेस मॉडल का एक उदाहरण है. उबर ने संपत्ति की खरीदी पर कोई बड़ी पूंजी नहीं खर्च की. उबर का पूरा जाल उन्होंने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से जोड़ रखा है.

अलीबाबा: फ्लाई लाइट बिजनेस मॉडल के तर्ज पर अलीबाबा भी दुनिया का दिग्गज रिटेलर बन मार्केट में छाया हुआ है. मजे की बात यह है कि इसके नाम पर एक भी इन्वेंट्री नहीं है. यह खुद ही प्रमोटर और निवेशक के निवेश पर प्रतिफल को बढ़ाता है, क्योंकि पूंजीगत व्यय बेहद कम है.

फ्लाई लाइट मॉडल के फायदे

हाई रिटर्न (High Return)

फ्लाई लाइट मॉडल आपको संपत्ति पर हाई रिटर्न देता है, क्योंकि आपको अपने व्यवसाय के विस्तार के लिए कहीं भी बड़ी पूंजी खर्च नहीं करनी पड़ती है. पूंजी की समान लागत पर, आप दुनिया के हर कोने में अपने व्यवसाय को बढ़ा सकते हैं, जिससे आपका रिटर्न वैल्यू अपने आप बढ़ जाता है.

नियंत्रित लाभ (Controlled Profit Fluctuations)

लगातार एडवांस हो रही तकनीक (Technique) की दुनिया में लाभप्रदता (Profitability) को निरंतर बढ़ाते रहना आसान नहीं था. पिछले कुछ दशकों में टेक्नोलॉजी ने बहुत से व्यवसाय को दौड़ से बाहर कर दिया है. फ्लाई हाई बिजनेस मॉडल एक ऐसा व्यवसाय है, जिसमें आपको बहुत बड़ी पूंजी निवेश करने की जरूरत नहीं होती और न ही अचानक भारी नुकसान होता है.

ड्राइवेन कॉस्ट (Scalability Driven Cost)

व्यवसाय की पुरानी पद्धति यानी पारंपरिक व्यापार मॉडल में व्यवसाय शुरु करने अथवा व्यवसाय को बढ़ाने के लिए भारी पूंजी की आवश्यकता पड़ती थी, लेकिन नये व्यवसाय मॉडल में लागत में किसी भी प्रकार की वृद्धि नहीं होती, चाहे उसे कितना भी विस्तार दे दें, इसके बावजूद आपका मुनाफा लगातार बढ़ता रहता है.

फ्लाई लाइट मॉडल के उदाहरण (Examples of Fly Light Models)

फ्रेंचाइजी (Franchise)

फ्रेंचाइजी बिजनेस फ्लाई लाइट बिजनेस मॉडल का सबसे आसान व्यवसाय है, क्योंकि यह फ़्रेंचाइज़र और फ्रेंचाइजी के बीच वितरित करके पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure) पर उनके बोझ को कम करता है. एक बड़े फ़्रेंचाइज़र को नई यूनिट स्थापित करने के लिए अधिक पूंजी निवेश करने की आवश्यकता नहीं होती, यहां तक कि एक छोटी फ्रेंचाइजी को भी सेल, मार्केटिंग, स्वामित्व उपकरण, प्रशिक्षण/शिक्षण आदि पर बहुत ज्यादा निवेश की आवश्यकता नहीं होती. एक फ्रेंचाइजी को फीस शुरू करने के लिए ट्रेडमार्क, सिस्टम, साइनेज, सॉफ्टवेयर मिलता है. एक फ़्रेंचाइज़र अपनी फ्रेंचाइजी को जनशक्ति, कॉर्पोरेट रणनीतियों, बिक्री, मार्केटिंग, ब्रांडिंग समर्थन आदि का प्रशिक्षण देता है, बदले में उन्हें लाइसेंस शुल्क, मासिक रॉयल्टी का लाभ मिलता है. इसके कुछ लोकप्रिय मॉडल हैं: Pizza Hut, Domino's Pizza, Subway, McDonald's इत्यादि.

आउटसोर्सिंग (Outsourcing)

यह भी फ्लाई लाइट मॉडल पर आधारित बिजनेस है, जहां आप अपनी पूंजी की लागत को कम करते हैं और अपने कार्य को किसी बाहरी पार्टी में स्थानांतरित करके परिचालन दक्षता (Operating Efficiency) का निर्माण करते हैं.

एसेट शेयरिंग मॉडल (Asset Sharing Model)

एसेट शेयरिंग मॉडल भी फ्लाई लाइट मॉडल के प्रकारों में से एक है. दो या अधिक कंपनियां अपने खर्चों को कम करने के लिए एक उच्च मूल्य वाली संपत्ति की लागत साझा करने के लिए एक छत के नीचे आती है. कई बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे तेल और गैस कंपनियां इस मॉडल पर काम करती हैं. जहां महंगी संपत्ति की खरीद की जरूरत होती है. इसे पूंजीगत लागत का अनुकूलन, जोखिम विविधता और पूंजीगत लागत का विभाजन कहा जाता है.

पे-पर-यूज: को-शेयरिंग/को-वर्किंग स्पेस

ट्रेडिशनल बिजनेस मॉडल में अगर आपकी कंपनी देश के पांच अलग-अलग शहरों में छोटे ऑफिस खोलना चाहती है तो आपको हर ऑफिस की स्थापना में भारी निवेश करना होगा. लेकिन पे-पर-यूज, फ्लाई लाइट बिजनेस मॉडल का एक तेजी से बढ़ता हुआ ट्रेंड है, जिसने ज्यादा खर्च किए बिना अपना कार्यालय स्थापित करना बहुत आसान बना दिया है. यह पे-पर-यूज पर को-शेयरिंग/को-वर्किंग ऑफिस स्पेस की अवधारणा है, जहां आप उपयोग के अनुसार किराया पे करते हैं. इस मॉडल में आपको कॉमन पेंट्री, इंटरनेट, प्रिंटर, मीटिंग रूम, वॉशरूम और स्टेशनरी शेयर करनी होती है.