नई दिल्ली: जायफल के छिलके से बनी टॉफी के उत्पादन की प्रक्रिया संबंधी तकनीक के व्यावसायिकरण का काम शुरू हो चुका है. इस संबंध में आईसीएआर-सीसीएआरआई और गोवा स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड के बीच एक अनुबंध ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी हुए है. Business Loan: एग्रीप्रेन्योर बनने के लिए यह सरकारी स्कीम सबसे बेहतर, यहां जानिए सबकुछ

जायफल में लगभग 80-85 प्रतिशत पेरिकॉर्प (जायफल का बाहरी छिलका) है और अधिक उपज देने वाली जायफल की किस्में प्रति पेड़ 100 किलोग्राम तक ताज़ा पेरिकॉर्प की पैदावार करती हैं. वर्तमान समय में किसान जायफल के बीज और गुदा का इस्तेमाल करते हैं और पेरिकॉर्प को खेत में ही सड़ने के लिए छोड़ देते हैं. लेकिन यह तकनीक व्यर्थ छोड़ दिए गए पेरिकॉर्प से जायफल टॉफी बनाकर इसके प्रभावी इस्तेमाल में मदद करती है.

व्यावसायिक नज़रिए से यह जायफल टॉफी काफी महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है. ये उत्पाद जायफल से निर्मित मसाला उत्पादों- जायफल के बीज और गुदा की उपज के अलावा किसानों और उद्यमियों को एक अतिरिक्त आय दिलाने में मदद करता है. ख़ास बात ये है कि किसी सिंथेटिक प्रिज़र्वेटिव का इस्तेमाल किए बिना ही, कमरे के सामान्य तापमान पर इस उत्पाद का एक साल तक भंडारण किया जा सकता है.

आईसीएआर-सीसीएआरआई ने इस तकनीक का पेटेंट कराने के लिए पहले से ही आवेदन कर दिया है. इस तकनीक के व्यावसायिकरण की दिशा में अनुबंध ज्ञापन पर हस्ताक्षर को साकार बनाने में संस्थान प्रौद्योगिकी प्रबंधन इकाई (आईटीएमयू) ने भी मदद की.

आईसीएआर-सीसीएआरआई के निदेशक डॉ चाकुरकर और जीएसबीबी गोवा के सदस्य सचिव डॉ. प्रदीप सरमोकदम ने अनुबंध ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. इस तकनीक को विकसित करने की प्रक्रिया से जुड़े प्रधान वैज्ञानिक (बागवानी) डॉ. एआर देसाई, जीएसबीबी गोवा के अधिकारी और आईसीएआर-सीसीएआरआई के स्टाफ सदस्यों की उपस्थिति में इस अनुबंध ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए. यह पांच वर्ष तक वैध रहने वाला नॉन-एक्सक्लूसिव लाइसेंसिंग अनुबंध है.

इस मौके पर डॉ ईबी चाकुरकर ने गोवा राज्य में किसानों एवं कृषि उद्यमियों (Agri-entrepreneurs) को लाभ पहुंचाने के लिए भविष्य की प्रौद्योगिकियों के व्यावसायिक उपयोग और हस्तांतरण की ज़रूरत पर बल दिया.