दिव्यांग महेश UPSC क्लियर कर बने युवाओं के लिए मिसाल, 42 साल की उम्र में कर दिखाया ये कमाल

Mahesh Kumar Success Story in Hindi.

अक्सर आपने सुना होगा कि “Age is Just a Number”, लेकिन इस बात को सच कर दिखाया, मुज़फ्फरपुर के रहने वाले दिव्यांग महेश कुमार ने।

महेश कुमार ने 42 साल की उम्र में UPSC की परीक्षा पास करके एक इतिहास रचा दिया।

महेश ने इस उम्र में UPSC की परीक्षा को पास कर ना सिर्फ इतिहास रचा बल्कि कई सारे लोगों के लिए प्रेरणा भी बन चुके हैं। हालांकि, उन्हें यूपीएससी पास करने के इस सफ़र में महेश को कई सारे संघर्षों का सामना भी करना पड़ा, आज इन्हीं सघर्षों के सफर को पार करने के बाद महेश की सफलता हर अखबार और न्यूज चैनल की हेडलाइन बन चुकी है।

आखिरी रैंक के साथ क्लियर की UPSC की परीक्षा

महेश कुमार ने UPSC की इस परीक्षा में आखिरी रैंक 1016 को हासिल की है। मीडिया से बात करते हुए उन्होंने ये बताया कि उन्होंने दोबार BPSC यानी कि “बिहार लोक सेवा आयोग” की 67वीं और 68वीं परीक्षा को दिया था। लेकिन दोनों ही बार वो उसे क्लेयर नहीं कर पाए थे। पहली बार साल 2013 में TET की परीक्षा को पास करके वो नियोजित शिक्षक बने और फिर साल 2018 में सिविल कोर्ट में पेशकार बने। फिलहाल वो शेखपुरा ज़िला न्यायालय में बेंच क्लर्क के तौर पर काम करते हैं।

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महेश कुमार का जीवन बचपन से ही काफी संघर्ष में बीता। मुजफ्फरपुर के तुर्की में उनका जन्म हुआ ये इलाका कभी नक्सल प्रभावित हुआ करता था। इनके पिता बाजारों में घूम-घूमकर दाल-चावल बेचा करते थे। महेश सात भाई बहन के साथ एक बड़े परिवार के पले बढ़े थे, जिसका भरण-पोषण भी बड़ी मुश्किलों के साथ हो पाता था। इन सब संघर्षों के बाद भी महेश ने कभी हार नहीं मानी और अपनी मेहनत पर विश्वास कर आगे बढ़ते रहे।

हमेशा से संघर्षपूर्ण रहा महेश की पढ़ाई का दौर

महेश कुमार को अपनी पढ़ाई में भी बहुत-सी परेशानियों का सामना किया। साल 1995 में दसवीं की परीक्षा में वो अपने स्कूल के टॉपर बने थे लेकिन आर्थिक तंगी उनके भविष्य के लिए एक बड़ी मुसीबत बन गई। उन्हें अपनी पढ़ाई को यहीं पर रोकना पड़ा लेकिन उन्होंने सही समय आने पर फिर वापसी की और 11 साल बाद 2008 में बारहवीं की परीक्षा को पास किया। जिसके बाद ग्रैजुएशन करके TET की परीक्षा पास की और शिक्षक बने।

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UPSC की परीक्षा को पास करना भी उनके लिए एक बड़ा चैलेंज रहा क्योंकि इस दौरान वो अपनी जिला न्यायालय में बेंच क्लर्क की जॉब भी कर रहे थे। अपनी तैयारी के लिए उन्हें केवल वही समय मिलता था जो ड्यूटी के बाद बचता था।

कोर्ट आने और जाने से दो घंटे पहले और बाद में वो अपनी पढ़ाई किया करते थे। ये परीक्षा पास करने में उन्हें एक लंबा वक्त जरूर लगा। लेकिन आज उनके परिवार सहित अपने पूरे समाज को उनकी सफलता पर गर्व है।

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