नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर जानें उनसे जुड़ी बातें और उनके अनमोल विचार
‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।'
आज भी यह वक्तव्य हर किसी के दिल में जोश भर देने का काम करता है। भारत को आजादी दिलाने में कई शूरवीरों का महान योगदान था। लेकिन इनमें एक ऐसे शूरवीर भी थे जिनके विचार आज भी लोगों के हृदय में जीवित हैं। भारत मां के वो लाल हैं नेताजी सुभाषचंद्र बोस।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए खुद की सेना गठित कर ली थी। आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन 23 जनवरी को भारत सरकार ने पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का फैसला भी किया है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था। उन्होंने पहली भारतीय सशस्त्र बल की स्थापना की थी जिसका नाम आजाद हिंद फौज रखा गया था।
नेताजी का जन्म ओडिशा में हुआ था और वो एक होनहार छात्र थे। स्कूल और यूनिवर्सिटी दोनों में हमेशा उनकी टॉप रैंक आती थी। 1918 में उन्होंने फिलॉसफी में ग्रेजुएशन फर्स्ट डिवीज़न के साथ पूरी की। 1920 में उन्होंने सिविल सर्विस परीक्षा इंग्लैंड में पास की थी, हालांकि कुछ दिनों बाद 1921 में उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष को देखते हुए इस्तीफा दे दिया।
1920 से 1930 के बीच नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंडियन नेशनल कांग्रेस के युवा और कट्टरपंथी नेताओं में गिने जाने लगे। इसके बाद 1938 और 1939 में वो इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष भी बनें। 1921 से 1941 के दौरान वो पूर्ण स्वराज के लिए कई बार जेल भी गए थे। उनका मानना था कि अहिंसा के जरिए स्वतंत्रता नहीं पाई जा सकती।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने सोवियत संघ, नाजी जर्मनी, जापान जैसे देशों की यात्रा की और अंग्रेजों के खिलाफ सहयोग मांगा। इसके बाद जापान में उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना की। पहले इस फौज में वे लोग शामिल किए गए, जो जापान की ओर से बंदी बना लिए गए थे। बाद में इस फौज में बर्मा और मलाया में स्थित भारतीय स्वयंसेवक भी भर्ती किए गए। साथ ही उस समय देश के बाहर रह रहे लोग भी इस सेना में शामिल हो गए।
नेताजी ने आजाद हिंद रेडियो स्टेशन जर्मनी में शुरू किया था और पूर्वी एशिया में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया। सुभाष चंद्र बोस मानते थे कि श्रीमद्भागवत गीता उनके लिए प्रेरणा का मुख्य स्त्रोत थी। जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उन्हें इस कदर विचलित कर दिया कि वे भारत की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।
12 सितंबर 1944 को रंगून के जुबली हॉल में शहीद यतीन्द्र दास के स्मृति दिवस पर नेताजी ने अत्यंत मार्मिक भाषण देते हुए कहा - 'अब हमारी आजादी निश्चित है, परंतु आजादी बलिदान मांगती है। आप मुझे खून दो, मैं आपको आजादी दूंगा।' यही देश के नौजवानों में प्राण फूंकने वाला वाक्य था, जो भारत ही नहीं विश्व के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
16 अगस्त 1945 को टोक्यो के लिए निकलने पर ताइहोकु हवाई अड्डे पर नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और स्वतंत्र भारत की अमरता का जयघोष करने वाला, भारत मां का दुलारा सदा के लिए राष्ट्रप्रेम की दिव्य ज्योति जलाकर अमर हो गया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस पर जानते हैं उनसे जुड़े अनमोल विचारः--
- ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए।
- आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके। एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके।
- मुझे यह नहीं मालूम कि स्वतंत्रता के इस युद्ध में हम में से कौन-कौन जीवित बचेगा। परन्तु मैं यह जानता हूँ, अंत में विजय हमारी ही होगी।
- राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्य, शिव और सुन्दर से प्रेरित है।
- मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्यायों जैसे गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, कुशल उत्पादन एवं वितरण का समाधान सिर्फ समाजवादी तरीके से ही किया जा सकता है।
- मुझमें जन्मजात प्रतिभा तो नहीं थी, परन्तु कठोर परिश्रम से बचने की प्रवृति मुझमें कभी नहीं रही।
- जीवन में प्रगति का आशय यह है कि शंका संदेह उठते रहें और उनके समाधान के प्रयास का क्रम चलता रहे।
- हम संघर्षों और उनके समाधानों द्वारा ही आगे बढ़ते हैं।
- अगर संघर्ष न रहे, किसी भी भय का सामना न करना पड़े, तब जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है।
- मैं संकट एवं विपदाओं से भयभीत नहीं होता। संकटपूर्ण दिन आने पर भी मैं भागूंगा नहीं वरन आगे बढ़कर कष्टों को सहन करूँगा।
- असफलताएं कभी कभी सफलता की स्तम्भ होती हैं।
- सुबह से पहले अंधेरी घड़ी अवश्य आती है। बहादुर बनो और संघर्ष जारी रखो, क्योंकि स्वतंत्रता निकट है।
- समय से पूर्व की परिपक्वता अच्छी नहीं होती, चाहे वह किसी वृक्ष की हो या व्यक्ति की और उसकी हानि आगे चल कर भुगतनी ही होती है।
- निःसंदेह बचपन और युवावस्था में पवित्रता और संयम अति आवश्यक है।
- माँ का प्यार सबसे गहरा होता है जो बिना किसी स्वार्थ के होता है जिसे मापा नहीं जा सकता।