आजकल अधिकांश बिजनेसमैन अपने ब्रांड को वायरल करने के लिए इसके प्रचार-प्रसार पर बेहिसाब पैसे खर्च करते हैं, ताकि बाजार में उनकी अच्छी साख बनने के साथ उनका ब्रांड भी लोगों तक पहुंचे. लेकिन यहां हम कुछ ऐसे धमाकेदार टिप्स आपको बताने जा रहे हैं जिससे आप अपने ब्रांड को ऑर्गेनिक तरीके से वायरल कर सकते है. आखिर ऐसा क्या हो सकता है कि बिना विशेष खर्च किये आपका ब्रांड वायरल हो जाये. आइये ऐसे पांच धमाकेदार टिप्स के बारे में जानते और समझते है.

1- इमोशन बनाम इनफॉर्मेशन (Emotion Filling Vs Information)

सर्वप्रथम यह जानें कि आपके ब्रांड के विज्ञापन में प्रमोशन एन्ड सेल्स की पिच के अंदर, आप उपभोक्ता की फीलिंग पर नजर रख रहे हैं या केवल प्रोडक्ट की प्रशंसा कर रहे हैं. आज आम उपभोक्ता की रुचि इसमें नहीं है कि आप अपने प्रोडक्ट की ही बात करें. उनकी रुचि इसमें है कि आपका ब्रांड क्या फिलिंग जेनरेट कर रहा है. अमूमन जो भी ऐड वायरल होते हैं, सभी में इमोशन बहुत स्ट्रॉन्ग रहे हैं. अगर वह सोशली रिस्पांसिबल प्रोजेक्ट है तो उसे ज्यादा से ज्यादा लोग वायरल करते हैं. क्योंकि उस इमोशन से उनके अंदर एक अच्छा आदमी जागृत होता है, मसलन गूगल की ऐड थी. वह ऐड इंडिया के साथ पाकिस्तान में भी खूब वायरल हुआ था. मेहरा अपनी पोती से पाकिस्तान में मिठाई बेचने वाले युसुफ की यादें शेयर करते हैं कि कैसे हम लोग झांझरिया चुराकर खाते थे, पोती गूगल में सर्च युसुफ मियां की मिठाई की दुकान का पता लगाकर फोन पर युसुफ मियां को अपना परिचय देती है. फिर गूगल पर ही सर्चकर वीजा बनवाकर युसुफ मियां भारत आते हैं. मेहरा के घर का बेल बजाते हैं. दरवाजा खुलता है मेहरा पूछते हैं आप कौन? युसुफ मियां उन्हें ‘हैप्पी बर्थडे यारा’ कहकर गले लगा लेते हैं. मेहरा युसुफ को पहचान लेते हैं. इसके बाद दोनों देर तक गले मिलकर रोते हैं.

इस पूरे ऐड में कहीं भी गूगल ने अपने बारे में इन्फॉर्मेशन नहीं दिया कि आप गूगल पर कुछ भी सर्च कर सकते हैं. इसमें एक इमोशनल स्टोरी थी. ऐसी स्टोरी देखकर आपके अंदर का अच्छा इंसान जाग उठता है. दहेज एवं घरेलू हिंसा इत्यादि मुद्दे पर बनी ऐड भी खूब वायरल हुई. इसे रिकॉल वैल्यू कहते हैं. आपका ब्रांड लोगों को कितना याद रहता है, यह निर्भर इस बात पर करता है कि आपने ब्रांड के बारे में कितना फील कराया है.

2- सामाजिक दायित्व संवेदनशील स्टोरी (Social Responsible Emotional Story)

अगर आपके ऐड में एक सामाजिक दायित्व वाली संवेदनशील स्टोरी है, तो लोग न केवल उससे जुड़ेंगे, बल्कि शेयर भी करेंगे. आपको इसके लिए बहुत ज्यादा खर्च भी नहीं करना पड़ेगा. आप जान लें कि एक्स्ट्रा खर्चा पेड ब्रांडिंग में करना पड़ता है, क्योंकि वह ऑर्गेनिक ब्रांड नहीं है. यहां एक फते की बात आपको समझनी होंगी कि लोगों का बाइंग बिहेवियर इमोशन से इन्फ्लुएंस होता है, लॉजिक से नहीं होता.

3- क्षमता की मांग पर रखें ध्यान (Attention Seeking Potential)

पहले के जमाने में बनने वाले ऐड इसलिए सुखांत रखे जाते थे, ताकि लोग एक मैसेज लेकर जा सकें, वही चीजें उन्हें इन्फ्लुएंस करती थी. लेकिन आज के दौर में अगर शुरुआत अच्छी नहीं होगी तो उपभोक्ता रिमोट उठायेगा और झट से चैनल बदलकर कुछ और देखना पसंद करेंगे. आपके ऐड में अटेंशन, ग्रैपिंग और पोटैंशियल अच्छा होना ही चाहिए, वरना आपकी ऐड कोई देखेगा ही नहीं. वह अटेंशन ही था कि एक युवक अपने शरीर पर ड्यू छिड़कना शुरु करता है तो इधर उधर से लड़कियां उस युवक की तरफ आने लगती हैं. अटेंशन का एक और उदाहरण हाइवे पर लगा एक बोर्ड था, जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में SEX लिखा हुआ था. सामने से आनेवाले की निगाह उस पर पड़ती तो वह ड्राइविंग स्लो करके उस बोर्ड को ध्यान से देखता. जिसके नीचे लिखा था, ‘कृपया अपनी गाड़ी लेन में ही चलाएं’. सेक्स एक बड़ा मजबूत इमोशन है, एक क्रिएटिव आर्टिस्ट उस स्ट्रांग इमोशन का सही इस्तेमाल करके अपने मैसेज को आप तक पहुंचा पाता है. इसी को कहते हैं अटेंशन सीकिंग पोटेंशियल.

4- एक सुंदर जिंगल (Call for Action with a beautiful Jingle)

जिंगल का मतलब आपकी ऐड देखने के बाद लोग गुनगुनाने को मजबूर हो जायें. मसलन ‘बोले मेरे लिप्स आई लव अंकल चिप्स..’ या ‘विक्स की गोली लो खिच खिच दूर करो’, ‘मैंगो फ्रूटी फ्रेश एंड ज्यूसी..’, ‘बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर हमारा बजाज’... आप ध्यान से देखें तो इन जिंगल्स में Hidden Commond यानी एक छिपा हुआ कमांड है, यही छिपा हुआ कमांड माइंड में जाकर रजिस्टर्ड हो जाता है और आप उसे गाहे बगाहे गुनगुनाते हैं. इसके बाद दुकान पर जाते हैं और बस वही प्रोडक्ट खरीद लेते हैं. आपका सबकॉन्शस (Subconcious) माइंड म्युजिक को और जिंगल्स को ज्यादा आसानी से रजिस्टर्ड कर लेता है.

5- बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना भी जरुरी! (Exaggerate the Insecurites and Fear)

इन दिनों बहुत सारे ब्रांड आपके अंदर छिपी हुई असुरक्षा को एक्सप्लोर करते हैं, आपके भीतर छिपे भय को सर्च करते हैं, और उसे ग्लोरिफाई करते हैं, इसके बाद आपको इंगेज करते हैं. उदाहरण के लिए जैसे हेयर ऑयल के लिए आपको गंजा होते दिखा देते हैं, या बालों में डैंड्रफ दिखा देंगे, या फिर एलआईसी पॉलिसी के लिए डेथ का सीन दिखा देंगे, इससे आपके अंदर सेंस ऑफ अर्जेंसी जागृत हो सकता है. जैसे लाइफ ब्वॉय साबुन का इस्तेमाल नहीं किया तो तुम्हारा बेटा बीमार होता रहेगा. इसके इस्तेमाल से हाथों से 99.9 प्रतिशत किटाणु मर जाएंगे. कॉस्मेटिक इंडस्ट्री तो इसी तरह भय को फैलाकर ही चल रही है. पिंपल्स को तो इतना भयावह बना दिया कि अब न तो उसकी शादी होगी ना उसका कोई दोस्त रहेगा, नौकरी तो उसे मिलेगी ही नहीं. सेंस ऑफ कंपल्सन और अर्जेंसी यानी तुरंत इनसिक्योरिटी क्रिएट करना. काफी लोग सोचते हैं कि एक ब्रांड को वायरल करने के लिए पैसा खर्च करना पड़ता है. मगर जरूरी नहीं है कि आप बहुत सा पैसा खर्च करें ही. बहुत सारे ब्रांड प्रत्यक्ष रूप से वायरल हो सकते हैं, जहां आप लोगों को शामिल कर सकते हैं.