आज भारत के युवाओं में भी स्टार्टअप शुरू करने की होड़ लग चुकी है। आज स्टार्टअप इंडिया योजना और हॉर्सेस स्टेबल, शार्क टैंक जैसे शोज ने स्टार्टअप्स के लिए फंडिंग की राह आसान कर दी है। आज के समय में कई स्टार्टअप्स अलग-अलग सोर्सेस से फंडिंग ले रहे हैं।

जब भी हम फंडिंग से जुड़ी कोई खबर पढ़ते हैं, तो कुछ शब्द हमारे सामने ज़रूर आते हैं, जैसे प्री सीड और सीड फंडिंग, और फंडिंग के अलग-अलग स्टेज। यदि आपका भी खुद का स्टार्टअप है या स्टार्टअप शुरु करना चाहते हैं और उसके लिए फंडिंग के बारे में जानना चाहते हैं, तो इस लेख में आपको फंडिंग के बारे में सारी जानकारी मिलेगी –

स्टार्टअप फंडिंग के प्रकार

किसी भी स्टार्टअप के लिए एंटरप्रेन्योर इन 3 प्रकार की फंडिंग को प्राप्त कर सकते हैं –

  1. इक्विटी के बदले फंडिंग :

    इस फंडिंग के लिए स्टार्टअप या तो अपनी फैमिली और दोस्तों से, एंजेल इन्वेस्टर्स, वेंचर कैपिटलिस्ट आदि लोगों से फंड लेते हैं। इस पूंजी के बदले ऐसे इन्वेस्टर्स को कंपनी की इक्विटी का कुछ हिस्सा दिया जाता है, जिसके बाद इन्वेस्टर्स चाहते हैं कि स्टार्टअप लगातार ग्रोथ करता रहे। इसके लिए इन्वेस्टर्स स्टार्टअप को लगातार मॉनिटर करते हैं या डिसिशन मेकिंग में हिस्सा लेते हैं। सामान्यतः फंडिंग का मतलब इक्विटी के बदले फंडिंग ही होता है।

  2. कर्ज :

    फंडिंग के इस प्रकार में स्टार्टअप्स बैंक, नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल इंस्टीटूट्स, गवर्नमेंट की लोन स्कीम्स के द्वारा लोन लेते हैं। इसके बदले स्टार्टअप को कोई भी इक्विटी नहीं देनी होती है, इसलिए इसमें इन संस्थाओं का स्टार्टअप के डिसिशन मेकिंग में कोई हाथ नहीं होता। स्टार्टअप इन संस्थाओं से लिया गया अमाउंट ब्याज के साथ एक निश्चित समय सीमा के अंदर लौटाते हैं। यह अमाउंट स्टार्टअप पर एक लायबिलिटी के रूप में होता है, इसलिए इसे वापस करने के लिए स्टार्टअप और ज्यादा मेहनत करते हैं।

  3. ग्रांट्स :

    स्टार्टअप्स को ग्रांट्स केंद्र या राज्य सरकारों के द्वारा, बड़े कॉर्पोरेट्स के द्वारा दी जाती है। ग्रांट्स स्टार्टअप्स के लिए एक तरह का रिवॉर्ड होता है, जो कि इन्हें हिस्सों में मिलता है। ग्रांट्स देने से पहले ये संस्थाएं स्टार्टअप्स को एनालाइज़ करती हैं और इनके लिए कुछ माइलस्टोन्स तय करती है। जैसे जैसे स्टार्टअप्स तय माइलस्टोन को पूरा करते जाते हैं, उन्हें ग्रांट्स का हिस्सा मिल जाता है। इसके लिए स्टार्टअप्स को ना तो कोई इक्विटी देनी होती है और ना ही कोई इंटरेस्ट देना होता है। इसके पीछे इन संस्थाओं का उद्देश्य देश में स्टार्टअप्स को मोटिवेट करना है।

फंडिंग के विभिन्न स्टेज

जब भी कोई स्टार्टअप शुरू होता है, तो उसे एक समय बाद आगे बढ़ने के लिए फंडिंग की ज़रूरत होती है। इस फंडिंग को पाने के लिए कई सारी स्टेजेस होती हैं, जानिये इन स्टेजेस के बारे में –

प्री सीड स्टेज

शरुआती दौर में जब स्टार्टअप अपने आईडिया पर काम करता है, तब उस आईडिया के लिए जो फंडिंग प्राप्त होती है, उसे प्री सीड फंडिंग कहते हैं। यह स्टार्टअप फंडिंग का शुरुआती चरण होता है।

इसके भी कुछ प्रकार होते हैं –

  1. सेल्फ फाइनेंसिंग :

    ये स्टार्टअप फंडिंग का सबसे बेसिक लेवल होता है, हर एंटरप्रेन्योर सबसे पहले अपनी सेविंग्स लगाकर ही स्टार्टअप शुरू करता है। जब कोई स्टार्टअप बिना किसी बाहरी फंडिंग के ग्रो होता है, तो ऐसे स्टार्टअप को बूटस्ट्रैप स्टार्टअप कहा जाता है।

    डॉ. विवेक बिंद्रा ने द कपिल शर्मा शो में खान सर के स्टार्टअप को बूटस्ट्रैप का बहुत अच्छा उदाहरण बताया था, क्योंकि खान सर बिना किसी बाहरी फंडिंग के अपना स्टार्टअप कर रहे हैं।

  2. दोस्त और परिवार :

    किसी भी स्टार्टअप के लिए जब एंटरप्रेन्योर को और ज्यादा फंड की ज़रूरत होती है, तो ऐसे समय में वो अपने दोस्तों और परिवारजनों फंडिंग लेता है।

    दोस्तों - परिजनों और एंटरप्रेन्योर के बीच विश्वास इस फंडिंग का मुख्य आधार होता है।

सीड स्टेज

जब स्टार्टअप का प्रोटोटाइप तैयार हो जाता है, ऐसे में प्रोडक्ट या सर्विस की टेस्टिंग की जानी होती है। इसके लिए और भी ज्यादा फंडिंग की ज़रूरत होती है, तभी सीड स्टेज फंडिंग की शुरुआत होती है –

  1. इन्क्यूबेटर्स :

    कई ऐसी संस्थाएं हैं, जो स्टार्टअप्स को अलग अलग प्रकार की सहायता देने के लिए स्थापित की जाती हैं, इन्हें इन्क्यूबेटर्स कहा जाता है।

    ये संस्थाएं स्टार्टअप्स को ग्रांट्स, कर्ज आदि प्रदान करते हैं। इसके साथ ही ये संस्थाएं स्टार्टअप्स को ऑफिस स्पेस, एडमिन, लगत हेल्प आदि भी प्रदान करती हैं। इसके लिए स्टार्टअप्स को इन संस्थाओं के सामने अपने स्टार्टअप को प्रेजेंट करना होता है।

  2. सरकारी लोन की योजनाएं :

    सामान्यतः जब कोई लोन लिया जाता है, तो उसके बदले में कुछ सिक्योरिटी देना होती है, लेकिन भारत सरकार ऐसी कई योजनाएं चला रही हैं, जिनमें स्टार्टअप को बिना किसी सिक्योरिटी के फंडिंग के साथ साथ दूसरी कई सारी सुविधाएँ मिलती हैं। ऐसी कुछ योजनाएं हैं स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया आदि।

  3. एंजेल इन्वेस्टर्स :

    आपने हॉर्सेज स्टेबल और शार्क टैंक इंडिया शो देखे होंगे। इसमें अलग अलग स्टार्टअप से जुड़े लोग आकर अपने स्टार्टअप के बारे में डिटेल में बताते हैं। अगर उनके स्टार्टअप में दम होता है, तो सामने बैठे बिज़नेसमैन उस स्टार्टअप में कुछ प्रतिशत इक्विटी के बदले पैसा इन्वेस्ट करते हैं। इसी को एंजेल इन्वेस्टमेंट कहा जाता है।

सीरीज़ ए फंडिंग

जब स्टार्टअप अपने प्रोडक्ट या सर्विस को लॉन्च कर देता है, ऐसे में स्टार्टअप को मार्केटिंग, ब्रांड क्रिएशन के लिए फंडिंग की ज़रूरत होती है। तब स्टार्टअप सीरीज़ ए फंडिंग करते हैं –

  1. वेंचर कैपिटल फंड :

    वेंचर कैपिटल फंड प्रोफेशनली मैनेज फंड होता है, वेंचर कैपिटलिस्ट ऐसे स्टार्टअप में इन्वेस्ट करते हैं, जिनकी हाई ग्रोथ की सम्भावना रहती है। हर वेंचर कैपिटलिस्ट किसी स्पेसिफिक सेक्टर में ही इन्वेस्ट करते हैं और इस इन्वेस्टमेंट के बदले स्टार्टअप में एक निश्चित प्रतिशत की इक्विटी लेते हैं। इसके साथ ही वे इन स्टार्टअप्स को समय समय पर मार्गदर्शन भी देते हैं।

  2. बैंकिंग और नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कम्पनीज़ :

    दूसरे प्रकार के इंवेस्टमेंट्स में स्टार्टअप को इन्वेस्टर्स को कुछ हिस्सा इक्विटी के रूप में देना होता है। इसके बदले यदि वे बैंक या नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कम्पनीज़ से लोन लेते हैं, तो उन्हें किसी भी प्रकार की इक्विटी नहीं देनी होती।

सीरीज़ बी, सी, डी, ई

इन स्टेजेस में स्टार्टअप अपने बिज़नेस को और एक्सपैंड करते हैं। जैसे सीरीज़ बढ़ती जाती है, वैसे वैसे इन्वेस्टमेंट की रकम भी बढ़ती जाती है।

  1. वेंचर कैपिटल फंड :

    फंडिंग के इन स्टेजेस में स्टार्टअप को बहुत बड़े लेवल पर अपने बिज़नेस को एक्सपैंड करने के लिए वेंचर कैपिटल फंड दिया जाता है। इसमें वेंचर कैपिटलिस्ट का एक ग्रुप मिलकर भी इन स्टार्टअप में इन्वेस्ट कर सकता है।

  2. प्राइवेट इक्विटी और इन्वेस्टमेंट फर्म्स :

    इस तरह के इन्वेस्टर आमतौर पर स्टार्टअप में इन्वेस्ट नहीं करते हैं, लेकिन पिछले कुछ समय में ये इन्वेस्टर ऐसे स्टार्टअप्स में इन्वेस्ट करने लगे हैं, जो लगातार ग्रोथ कर रहे हैं और जिनका रेवेन्यू बहुत हाई रहा है।

आईपीओ

पिछले कुछ समय में paytm, Zomato , Nykaa जैसे कई सारे स्टार्टअप्स शेयर मार्केट में एंटर हुए हैं। जब कोई कंपनी पहली बार शेयर मार्केट में एंटर होती है, तो वो अपना आईपीओ लॉन्च करती है।

आईपीओ लॉन्च करने की प्रक्रिया में बहुत सारी वैधानिक औपचारिकताओं से गुजरना होता है। इसलिए इसमें वही स्टार्टअप्स इन्वॉल्व होते हैं, जिनकी ग्रोथ बहुत हाई होती है।

इसके बाद यह स्टार्टअप शेयर मार्केट में लिस्टेड हो जाता है और कोई भी व्यक्ति इसके शेयर खरीदकर इसमें इन्वेस्ट कर सकता है।


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इन्वेस्टर स्टार्टअप में क्या देखते हैं

किसी भी स्टार्टअप में इन्वेस्ट करने से पहले इन्वेस्टर कुछ चीज़ें ज़रूर देखते हैं  -

  1. ऑब्जेक्टिव :

    इन्वेस्टमेंट करने से पहले इन्वेटर स्टार्टअप का ऑब्जेक्टिव देखते हैं। वो ये देखते हैं कि स्टार्टअप कस्टमर की प्रोब्लम्स का कोई यूनिक सोल्यूशन दे रहा है या नहीं।  यूनिक आईडिया से इन्वेस्टर को हाई ग्रोथ की सम्भावना दिखती है।

  2. मैनेजमेंट और बाकी टीम :

    इन्वेस्टर स्टार्टअप का मैनेजमेंट और उसकी पूरी टीम का एक्सपीरियंस और स्किल्स पर भी ध्यान देते हैं। अच्छा मैनेजमेंट और अच्छी टीम ही स्टार्टअप की ग्रोथ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

  3. स्केलेबिलिटी और स्थिरता :

    स्टार्टअप के पास एक अच्छी प्लानिंग होनी चाहिए, जिससे वो यह दिखा सके कि वो अभी हाल फ़िलहाल कैसे आगे बढ़ेगा और फ्यूचर में कितना ग्रोथ करेगा।

  4. फाइनेंशियल असेसमेंट :

    एक अच्छा बिज़नेस मॉडल स्टार्टअप की केश फ्लो, स्टार्टअप के ज़रूरी माइलस्टोन और ग्रोथ रेट का विस्तार में प्रदर्शन करता है। इसीलिए इन्वेस्टर इन्वेस्टमेंट करने से पहले स्टार्टअप का फाइनेंशियल असेसमेंट भी करते हैं।


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फंड रेजिंग के स्टेप्स

स्टार्टअप्स में फंड रेजिंग की प्रक्रिया के निम्नलिखित स्टेप्स हो सकते हैं :

  1. फंड्स की ज़रूरतों का आकलन :

    सबसे पहले स्टार्टअप को यह आकलन करना होगा कि उसे स्टार्टअप्स के किन किन ऑपरेशन्स के लिए फंड की ज़रूरत है और उसे कितना फंड रेज़ करना चाहिए। इसके साथ ही उसे अपने स्टार्टअप्स के अगले कुछ सालों के लिए माइलस्टोन भी तय करने होंगे।

    इसके लिए स्टार्टअप को अपनी फाइनेंशियल रिपोर्ट तैयार करनी होगी और उस रिपोर्ट में अभी तक की स्थिति और आगे की रूपरेखा होनी चाहिए।

  2. पिच की तैयारी :

    इन्वेस्टमेंट पाने के लिए आपको इन्वेस्टर के सामने अपने स्टार्टअप को प्रेजेंट करना होगा, जिसे पिच कहते हैं। आपने शार्क टैंक इंडिया में देखा होगा कि जब भी कोई स्टार्टअप अपनी पिच प्रेजेंट करता है, तो वो उसे स्टोरी टेलिंग के फॉर्मेट में करता है।

    जब आप स्टोरी टेलिंग के ज़रिये अपनी पिच दे रहे हों, तब आपको यह ध्यान रखना होगा कि आपकी स्टोरी का हर पहलु दूसरे से कनेक्ट करे। इसके बिना आपकी पिच बोरिंग होगी और इन्वेस्टर को उसमें इंटरेस्ट नहीं आएगा।

  3. इन्वेस्टर को टारगेट करना :

    सभी इन्वेस्टर्स और वेंचर कैपिटलिस्ट फंडिंग के लिए कुछ क्राइटेरिया तय करके रखते हैं। वे किस स्टेज पर फंडिंग करेंगे, किस सेक्टर के स्टार्टअप में इन्वेस्ट करेंगे आदि विभिन्न चीज़ों पर ध्यान देते हैं।

    अतः आपको इन्वेस्टर्स की वेबसाइट पर जाकर इन्वेस्टमेंट के उनके क्राइटेरिया को स्टडी करना होगा और जो इन्वेस्टर आपको इंवेस्ट करने के लिए सबसे जयदा सूटेबल हो, उसे आपको प्रपोसल भेजना होगा।

  4. इन्वेस्टर द्वारा स्टार्टअप की गहन जांच :

    किसी भी स्टार्टअप में इन्वेस्ट करने से पहले इन्वेस्टर्स और वेंचर कैपिटलिस्ट स्टार्टअप की गहन जांच करवाते हैं। इसमें वे स्टार्टअप के पिछले फाइनेंशियल रिकार्ड्स को जांचना, उसके फाउंडर्स का बैकग्राउंड चेक होता है और यह देखा जाता है कि क्या यह स्टार्टअप उनके इन्वेस्टमेंट के लिए योग्य है या नहीं।

    इसके बाद फंड रेजिंग को अंतिम रूप दिया जाता है और इन्वेस्टमेंट के लिए कॉन्ट्रैक्ट और अन्य डॉक्यूमेंट तैयार करवाए जाते हैं।

स्टार्टअप के लिए फंडिंग जुटाने से पहले आपको फंडिंग के बारे में सारी जानकारी होना आवश्यक है। उम्मीद है इस लेख के द्वारा आपको फंडिंग से जुड़े सभी सवालों का जवाब मिल गया होगा।