किसी भी व्यक्ति के जीवन में सबसे अहम रोल उसके शिक्षक का होता है। इसलिए महापुरुषों ने शिक्षक को भगवान से बड़ा दर्जा दिया है। शिक्षक से बड़ा कोई नहीं होता। हर किसी को जीवन में एक शिक्षक की ज़रुरत पड़ती ही है जो उसे सही राह दिखाए। कोरोना काल के समय जब हर जगह लॉकडाउन लग गया था, स्कूल-कॉलेज सब बंद हो गए थे, उस समय भी कुछ ऐसे शिक्षक सामने आए जिन्होने बच्चों को शिक्षा देना नहीं छोड़ा। ऐसे ही एक शख्स सामने आए जिन्होंने गरीब और वंचित बच्चों के जीवन में शिक्षा की रोशनी फैलाने का काम किया है। रेलवे इंजीनियर के रूप में काम करने वाले सुशील कुमार मीणा समाज में गरीब बच्चों को पढ़ाने का नेक काम करते हैं। यही नहीं उन्होंने कक्षा 8 और उससे ऊपर के छात्रों को एक शिक्षक के रूप में प्रशिक्षित भी किया है। इनके पढ़ाये बच्चे अपने घरों में और उसके आसपास छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं। आज ये अपने गैर-सरकारी एनजीओ की मदद से कई बच्चों के जीवन को संवार चुके हैं। लेकिन उनके लिए यह सफर इतना भी आसान नहीं था। रास्ते में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। आइए जानते हैं उनके जीवन का प्रेरक सफर।
शुरू से ही शिक्षा देने में थी रूचि
साल 2013 में कानपुर के एक सरकारी कॉलेज से इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद सुशील कुमार मीणा सेक्शन इंजीनियर के रूप में रेलवे में नौकरी करने के लिए गाजियाबाद चले गए। गाजियाबाद में ही उन्होंने ग्रुप डी के कर्मचारियों के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया जो सरकारी सेवा की परीक्षा दे रहे थे। वो खुद सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, लेकिन इन अभ्यर्थियों को पढ़ाने के लिए उन्होंने अपनी पढ़ाई बंद कर दी। इस बीच उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ा।
ऐसे मिली वंचित बच्चों को पढ़ाने की प्रेरणा
सुशील कुमार मीणा रेलवे इंजीनियर के तौर पर अच्छी-खासी नौकरी कर रहे थे। सुशील जब गाजियाबाद में तैनात थे, तो एक रात उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गयी। एक रात वह सड़क किनारे रहने वाले बच्चों से मिले, जो अपना जीवन जीने के लिए सड़कों पर भीख माँग रहे थे या अपने परिवारों की सहायता के लिए कचरा बीनने का काम कर रहे थे। वे बच्चे खाना खाने और अपनी हर ज़रुरत के लिए दूसरों पर निर्भर थे। ये बच्चे भीख मांगकर, कूड़ा बीनकर अपना गुज़ारा करते थे। उसी समय वह एक ऐसे परिवार से मिले, जिसने अपनी 12 साल की बेटी की शादी आयोजित करने के लिए उनसे संपर्क किया। सुशील ने तुरंत माता-पिता को डांटते हुए समझाया और बच्चे को शादी करने से रोका। इन सभी घटनाओं को देख वो बहुत आहत हुए और उन्हें लगा कि इन लोगों को बेहतर भविष्य देने का काम शिक्षा ही कर सकती है। इसलिए उन्होंने सड़कों पर रहने वाले बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया।
ऐसे दी गरीब बच्चों को शिक्षा
सुशील ने अपना समय भिखारियों और कम आय वर्ग के लोगों के बच्चों को पढ़ाने के लिए समर्पित करने में लगा दिया। उन्होंने ज़रूरी चीज़ें मुहैया करायी, जो उनके माता-पिता नहीं दे सकते थे। उन्होंने बच्चों को किताबें, स्टेशनरी, भोजन, कपड़े, यूनिफॉर्म आदि सभी सामान अपने पैसों से दिया। उन्होंने 2015 में एक एनजीओ को शुरू किया जिसका नाम निर्भेद फाउंडेशन रखा। उन्होंने विभिन्न शहरों में अपनी पोस्टिंग के दौरान सड़कों पर रहने वाले बच्चों को इस एनजीओ के माध्यम से पढ़ाने का काम किया। आज उनके एनजीओ के अलग-अलग राज्यों में 22 केंद्र हैं।
कई चुनौतियों का करना पड़ा सामना
सुशील को एक बार में पांच से छह घंटे के लिए कक्षाएं लेनी पड़ती थी जो किसी के भी लिए आसान नहीं था। इसमें उनकी मदद उनके कॉलेज के एक दोस्त ने की। शुरू में वो 14-15 साल के बच्चों से मिले जिन्हें कोई प्राथमिक शिक्षा नहीं मिली थी। उन्होंने बच्चों को शुरू से पढ़ाना सिखाया। इसके बाद मीणा 8वीं तक पढ़े बच्चों को एक शिक्षक के रूप में तैयार करने लगे ताकि वे बच्चे अपने से छोटे बच्चों को पढ़ा सकें। लॉकडाउन के दौरान, उन्हें खराब कनेक्टिविटी के साथ ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करने में भी कई परेशानियां हुई इसलिए उन्होंने स्थानीय बच्चों को शिक्षक के रूप में पढ़ाने को प्रेरित किया। लगभग दो साल तक मीणा और उनके दोस्त ने मिलकर बच्चों को पूरी लगन से पढ़ाया। एक समय ऐसा था जब वे लगभग 300 बच्चों को संभाल रहे थे। धीरे-धीरे सुशील ने अपनी टीम का विस्तार करने और बोर्ड में स्वयंसेवकों को लाने का फैसला किया। उन्होंने दूसरे एनजीओ और लोगों से भी इन बच्चों को पढ़ाने का अनुरोध किया।
एक शिक्षक के रूप में पाई सफलता
सुशील कुमार मीणा ने अपने निर्भेद फाउंडेशन की मदद से कई बच्चों के जीवन को संवारने का काम किया है। यही कारण है कि सुशील आज 22 केंद्रों के माध्यम से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में 3,700 से अधिक बच्चों को 110 स्थायी स्वयंसेवकों व अन्य लोगों की मदद से शिक्षा दे रहे हैं। बच्चों को पढ़ाने के अलावा यह एनजीओ इन बच्चों के माता-पिता, खासकर उनकी माताओं को नौकरी के अवसर भी प्रदान करता है। यह उन्हें बच्चों के लिए कपड़े सिलने के लिए प्रशिक्षित भी करता है।
सुशील कुमार मीणा आज हजारों बच्चों के जीवन में शिक्षा की रोशनी फैला चुके हैं। उन्होंने कई वंचित बच्चों को सक्षम बनाने का महान काम किया है। आज वो लाखों लोगों को अपने इस कार्य के जरिए प्रेरित कर रहे हैं। सुशील कुमार मीणा के जैसे शिक्षकों की आज समाज को बहुत आवश्यकता है।