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शहद और उससे बने उत्पादों की मांग अब विदेशों में काफी बढ़ गई है और देश से हर साल उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा निर्यात किया जाता है. दरअसल, देश में किसानों की आय बढ़ाने के लिए परंपरागत खेती के अलावा कई अन्य कृषि उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है. शहद उत्पादन भी उनमें से एक है, जिसका उत्पादन कर किसान न सिर्फ रोजगार प्राप्त कर रहे हैं, बल्कि उनका शहद विदेशों में भी निर्यात किया जा रहा है. हालांकि आज शहद उत्पादन केवल किसानों तक सीमित नहीं रह गया है.

शहद संबंधित उत्पादों का निर्यात हुआ दोगुना

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि आज भारत प्रत्येक वर्ष लगभग 1.20 लाख टन शहद का उत्पादन करता है. शहद उत्‍पादन का लगभग 50 प्रतिशत निर्यात किया जाता है. बीते कुछ वर्षों में शहद व संबंधित उत्पादों का निर्यात बढ़कर करीब दोगुना हो चुका है. देश में गुणवत्तापूर्ण शहद का उत्पादन और अधिक हो सके इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं.

NAFED ने संभाली शहद मार्केटिंग की कमान

केंद्रीय मंत्री तोमर ने बुधवार को मधु क्रांति पोर्टल व हनी कॉर्नर सहित शहद परियोजनाओं का शुभारंभ करते हुए कहा, शहद (मीठी) क्रांति देशभर में तेजी से अग्रसर होगी. शहद का उत्पादन बढ़ाकर निर्यात में वृद्धि की जा सकती है, रोजगार बढ़ाए जा सकते हैं, वहीं गरीबी उन्मूलन की दिशा में भी बेहतर काम किए जा सकते हैं. नाफेड ने शहद की मार्केटिंग की कमान संभाली है यह शुभ संकेत हैं. इसके माध्यम से दूरदराज के मधुमक्खी पालकों को अच्छी मार्केट मिल पाएगी.

मधुक्रांति पोर्टल की लें मदद

कृषि मंत्री ने कहा कि "मधु क्रांति पोर्टल" के माध्यम से पारदर्शिता आएगी. हम जो कुछ भी कर रहे हैं, वह वैश्विक मानकों पर खरा उतरना चाहिए. मंत्रालय ने पिछले कुछ समय में मापदंड बनाए हैं, जिससे स्थिति में काफी सुधार आई हैं. उन्होंने कहा, कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) में छोटे मधुमक्खी पालकों को शामिल करने के लिए जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है. उन्हें ट्रेनिंग देने का कार्य भी किया जाना चाहिए.

मीठी क्रांति के लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित

कोरोना वायरस महामारी के बाद हुए लॉकडाउन के बाद कई प्रवासी कामगार मीठी क्रांति से जुड़े, जिसकी वजह से आज देश में शहद उत्पादन कई गुना बढ़ गया है. वैज्ञानिक तरीके से मधुमक्खी पालन के समग्र संवर्धन और विकास के लिए और "मीठी क्रांति" के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत 500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे.