राजनैतिक, क्षेत्रीय, और ऐतिहासिक जटिलताओं की वजह से इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष दशकों से जारी है। यह ब्लॉग प्राइमरी मुद्दों, इज़राइल और फिलिस्तीन की भूमिका, दोनों पक्षों की मांग, पड़ोसी देशों के प्रभाव, संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, रूस, भारत, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसी वैश्विक शक्तियों की भूमिका के बारे में है।

इजरायल-फिलिस्तीनी विवाद.

इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष एक अत्यंत जटिल और बहुआयामी मुद्दा है जिसकी उत्पत्ति और निरंतरता में कई ऐतिहासिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कारक योगदान करते हैं। हालाँकि, संघर्ष का एक प्राथमिक और बुनियादी कारण भूमि और क्षेत्र पर विवाद है।

दोनों देशों के बीच मुख्य रूप से इन 2 मुद्दों पर विवाद रहता है -

  1. यरूशलेम पर नियंत्रण:

    जेरूसलम यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व का शहर है। यरूशलेम, विशेष रूप से पुराने शहर के नियंत्रण और संप्रभुता पर विवाद, संघर्ष में बार-बार उभरने वाला मुद्दा रहा है। यरूशलेम पर नियंत्रण और संप्रभुता की चाह के कारण बार-बार दोनों देशों के बीच संघर्ष होता है।

  2. वेस्ट बैंक और गाज़ा पट्टी:

    वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर चल रहे विवाद ने क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ा दिया है। दोनों क्षेत्रों को भविष्य के किसी भी फ़िलिस्तीनी राज्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, और उनका नियंत्रण विवाद का विषय है। इन दोनों क्षेत्रों को भविष्य में फिलिस्तीन राज्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसके कारण भी इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच विवाद और संघर्ष होता रहता है।

इज़राइल की भूमिका

इज़राइल की स्थापना 1948 में हुई थी, जो एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है क्योंकि इसके कारण सैकड़ों हजारों फिलिस्तीनियों का विस्थापन हुआ।  इज़राइल एक संप्रभु, निश्चित सीमाओं के साथ सुरक्षित और यहूदी राज्य के रूप में अस्तित्व का अधिकार चाहता है।

फिलिस्तीन की भूमिका

फिलिस्तीनी क्षेत्र, मुख्य रूप से वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी, फिलिस्तीनी शासन के अधीन हैं, लेकिन वे फिलिस्तीनी प्राधिकरण (वेस्ट बैंक में) और हमास (गाज़ा में) के बीच विभाजित हैं। फिलिस्तीनी एक स्वतंत्र राज्य चाहते हैं, जिसमें वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी और पूर्वी येरुशलम को अपनी राजधानी बनाना, इज़रायली कब्ज़ा ख़त्म करना और फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए वापसी का अधिकार शामिल हो।

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इज़राइल की मांगें

  •     रिकग्निशन और सुरक्षा
  •     क्षेत्रीय अखंडता
  •     शरणार्थी मुद्दे का समाधान
  •     अविभाजित राजधानी के रूप में यरूशलेम

 फिलिस्तीन की मांगें

  •     राज्य का दर्जा और संप्रभुता
  •     कब्जे का अंत
  •     दूसरे देशों में बसे फिलिस्तीनियों को वापसी का अधिकार
  •     यरूशलेम राजधानी के रूप में

पड़ोसी देशों की भूमिका

इजिप्ट :

इजिप्ट इज़राइल और फिलिस्तीन दोनों के साथ अपनी बॉर्डर शेयर करता है और इन दोनों देशों के बीच हो रहे संघर्ष का प्रभाव उस पर भी पड़ेगा। इसलिए इजिप्ट इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच युद्धविराम समझौते में मध्यस्थता में भूमिका निभाता है, ताकि इस क्षेत्र में स्थिरता और शांति बनी रहे।

जॉर्डन :

जॉर्डन वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलम की स्थिरता को लेकर चिंतित है, जहां बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी आबादी रहती है। इसकी इज़राइल के साथ शांति संधि है, यही कारण है कि जॉर्डन समाधान खोजने के लिए राजनयिक प्रयासों में शामिल है।

लेबनान :

लेबनान फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों का घर है और अप्रत्यक्ष रूप से संघर्ष से प्रभावित है। लेबनानी लीडर हिजबुल्लाह का ईरान से संबंध है और वह इस संघर्ष में फिलिस्तीन के समर्थन में और इजराइल के खिलाफ खड़ा हुआ है।

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की भूमिका

संयुक्त राष्ट्र ने इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष को संबोधित करने में केंद्रीय भूमिका निभाई है। इसने टू-स्टेट सोल्यूशन और शांति के लक्ष्य के साथ विभिन्न रेजोल्यूशन जारी किए हैं। वर्तमान संघर्ष की शुरुआत फिलिस्तीन ने इज़राइल पर हमला करके की थी, जिसके कारण सयुंक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन के इस कदम का विरोध किया है। वहीं दोनों ओर के नागरिकों की सुरक्षा के लिए चिंता जाहिर की है।

अमेरिका की भूमिका

अमेरिका इस संघर्ष में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है, जिसे अक्सर इज़राइल के करीबी के रूप में देखा जाता है। इसकी भूमिका में शांति समझौते में मध्यस्थता करना, इज़राइल को सैन्य सहायता प्रदान करना और कभी-कभी राजनयिक मध्यस्थता की पेशकश करना शामिल है। इसके साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बयान जारी कर अपना पूरा समर्थन इज़राइल को दिया है।

रूस की भूमिका

रूस समय-समय पर राजनयिक प्रयासों के द्वारा इस मुद्दे से जुड़ा रहा है, लेकिन अमेरिका की तुलना में इसकी भूमिका कम प्रमुख है। रूस इज़रायल और फिलिस्तीन दोनों के साथ अपने संबंध बनाए रखता है।

भारत की भूमिका

भारत इज़राइल और फिलिस्तीनी लोगों के साथ मजबूत मैत्रीपूर्ण और ऐतिहासिक संबंध रखता है। साथ ही, भारत शांतिपूर्ण दो-राज्य समाधान के महत्व पर जोर देता है।

ईरान की भूमिका

इस क्षेत्र में ईरान की एक जटिल भूमिका है। यह हमास और हिजबुल्लाह जैसे उग्रवादी समूहों का समर्थन करता है, जो इज़राइल का विरोध करते हैं। ईरान का प्रभाव इसराइल के क्षेत्र में उसके सहयोगियों के लिए चिंता का विषय है।

यूएई और सऊदी अरब की भूमिका

यूएई और सऊदी अरब दोनों ने क्षेत्रीय गतिशीलता में बदलाव का संकेत देते हुए इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के लिए कदम उठाए हैं। इस कदम को ईरान के प्रभाव का मुकाबला करने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के एक तरीके के रूप में देखा जा सकता है।

इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष दुनिया के सबसे जटिल और स्थायी संघर्षों में से एक है। विभिन्न पक्षों की माँगें, भूमिकाएँ और प्रभाव रेजोल्यूशन को चुनौतीपूर्ण बनाते हैं। स्थायी शांति और टू-स्टेट सोल्यूशन प्राप्त करने के लिए, संघर्ष के व्यापक और उचित समाधान खोजने के लिए, निरंतर अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के साथ-साथ सभी शामिल पक्षों के सहयोग और समझौते की आवश्यकता होगी।


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