संघर्ष की आग में तपकर ही किसी व्यक्ति को सच्ची सफलता मिलती है। जिसने जीवन में संघर्ष ही ना किया हो उसे क्या पता की संघर्ष के बाद सफलता मिलने का क्या सुख होता है। भूख और गरीबी से जूझकर इसरो के वैज्ञानिक बनने तक का सफर तय करने वाली एक ऐसी ही शख्सियत है प्रेमपाल कुमार। जिन्होंने हालातों के आगे कभी घुटने नहीं टेके और आज एक बड़े वैज्ञानिक बन गए हैं। गरीबी से जूझकर वैज्ञानिक बनने तक का ये सफर प्रेमपाल के लिए इतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके संघर्ष और उनकी सफलता की कहानी (Success Story):

प्रेमपाल की कहानी अन्य लोगों से काफी अलग है। प्रेमपाल का जन्म बिहार के नालंदा जिले के ब्रह्मस्थान गांव में हुआ था। जहां एक ओर परिवार के सहयोग और प्रोत्साहन से बच्चे आर्थिक दिक्कतों का सामना करने पर भी मुकाम हासिल कर लेते हैं वहीं प्रेमपाल के पास यह भी सहारा नहीं था। प्रेमपाल का पूरा परिवार उन्हें पढ़ने नहीं देना चाहता था। बस उनके माता-पिता ही चाहते थे कि वो पढ़ाई करे। प्रेमपाल के दादा चाहते थे कि वह खेतों में काम कर परिवार की आमदनी बढ़ाने में मदद करें वहीं उनके चाचा-चाची भी उनकी पढ़ाई के खिलाफ थे। प्रेमपाल के पिता योगेश्वर कुमार की इतनी आमदनी नहीं थी कि बेटे को अच्छे स्कूल में भेज सकें। उनके परिवार ने भी उनकी मदद करने से इनकार कर दिया।

आखिरकार कोई चारा ना होने पर प्रेमपाल ने धर्म परिवर्तन कर लिया। प्रेमपाल के पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। परिवार में बंटवारे के बाद उनके हिस्से बमुश्किल एक बीघा जमीन आई थी, जो तीन बच्चों के भरण-पोषण के लिए काफी नहीं थी। उनके पिता मजबूरी में दूसरे लोगों के खेतों पर मजदूरी करते थे लेकिन इसके बाद भी परिवार का पेट भरना मुश्किल हो रहा था। प्रेमपाल का परिवार कई-कई रातों तक भूखा, खुले आसमान के नीचे सोता था।

प्रेमपाल के परिवार ने उधार लेकर एक भैंस खरीद ली थी ताकि उसके परिवार की दूध बेचकर कुछ आमदनी बढ़ सके। परिवार के हालात इतने बुरे थे लेकिन इसके बाद भी प्रेमपाल के पिता योगेश्वर कुमार अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते थे। प्रेमपाल सबसे बड़े लड़के थे। उनके पिता ने उनका दाखिला पास के ही स्कूल में करा दिया था। लेकिन स्कूल के हालात इतने बुरे थे कि शिक्षक कई-कई दिन तक स्कूल नहीं आते थे।

प्रेमपाल कई बार निराश हो जाते थे लेकिन उनकी मां उनका हौसला टूटने नहीं देती थी। उनकी मां कहती थी कि बड़ा लक्ष्य हासिल करने के रास्ते में छोटी मुश्किलों से घबराना नहीं चाहिए। इन परेशानियों से जूझ कर किसी तरह प्रेमपाल ने छठी कक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए गांव से दूर स्कूल में दाखिला लेने की जरुरत थी।

प्रेमपाल के पिता उनके लिए पैसों की व्यवस्था में लगे थे, लेकिन दादाजी चाहते थे कि वह खेतों में काम करें। वे किसी हाल में प्रेमपाल की शिक्षा के पक्ष में नहीं थे। अतः निराश होकर उन्होंने किसी के सुझाव में आकर ईसाई धर्म को अपना लिया ताकि उनके लड़के को दाखिला मिल जाए। प्रेमपाल को मिशनरी स्कूल में एडमिशन मिल गया, लेकिन पूरा गांव उनके खिलाफ हो गया। दादाजी ने योगेश्वर कुमार को बच्चों सहित घर से निकाल दिया।

घर से निकाले जाने के बाद प्रेमपाल का परिवार खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हो गया। लेकिन पिता प्रेमपाल की पढ़ाई नहीं रोकना चाहते थे। स्कूल की फीस 80 रुपये थी वो भी वो बड़ी मुश्किल से जमा कर पाते थे। आखिरकार प्रेमपाल 10 वीं क्लास की परीक्षा देने के लिए तैयार हुए लेकिन घर में जगह की कमी थी। उनके पिता योगेश्वर कुमार ने अपने पिता से घर में रहने देने का आग्रह किया तो उन्होंने दालान में रहने की इजाजत दे दी, जहां गाय-भैंसों को बांधकर रखा जाता था। यह बात उनके भाइयों को पता चली तो उन्हें घर से बाहर कर दिया। एक बार फिर उनका परिवार सड़क पर आ गया था।

लेकिन प्रेमपाल ने इस हालात में हार नहीं मानी और बोर्ड की परीक्षा दी। परीक्षा में प्रेमपाल को अच्छे अंक प्राप्त हुए। अब आगे की पढ़ाई के लिए पटना जाना ही एकमात्र विकल्प था। इसी दौरान पिता को किसी ने सुपर 30 के बारे में बताया, जहां आनंद कुमार गरीब बच्चों को फ्री में शिक्षा देते हैं। प्रेमपाल आनंद कुमार से मिलने गए।

आनंद कुमार ने प्रेमपाल की प्रतिभा को पहचान कर उन्हें अपने संस्थान में शामिल कर लिया। प्रेमपाल आनंद कुमार की छत्रछाया में आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने लगे। आखिरकार वो परीक्षा में पास हुए। प्रेमपाल की किस्मत बदलने का समय आ गया। वह अच्छी रैंक से पास हुए। आईआईटी परीक्षा पास करने के बाद प्रेमपाल आज बतौर वैज्ञानिक ‘इसरो’ में काम कर रहे हैं। उनका छोटा भाई भी आज उनके नक्शे कदम पर चलकर इंजीनियर बन गया है।

प्रेमपाल और उनके माता-पिता के हौसले ने विकट परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। गरीबी और भूख से जूझकर आज प्रेमपाल ने अपनी सफलता की कहानी (Success Story) लिखी है। उनकी यह कहानी सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) है।

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