यदि दिल में कुछ करने का जज़्बा हो, तो इंसान उस मुकाम को हासिल कर ही लेता है। इसी बात का जीता जागता उदहारण हैं श्री कैलाश सत्यार्थी (Kailash Satyarthi)। कैलाश सत्यार्थी पेशे से एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं, लेकिन बच्चों को बचाने की अपनी कोशिश ने उन्हें एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का व्यक्तित्व बना दिया।
श्री कैलाश सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी 1954 को मध्यप्रदेश के विदिशा में हुआ था। उनकी स्कूली शिक्षा विदिशा में ही हुई और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन और हाई वोल्टेज इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक कॉलेज में पढ़ाने का काम भी किया, लेकिन जल्द ही उन्हें अपना असली लक्ष्य मिल गया।
सन 1980 में उन्होंने बचपन बचाओ आंदोलन की शुरुआत की, अभी तक उन्होंने पुरे विश्व में 90 हजार से ज्यादा बच्चों को गुलामी, तस्करी और बाल मजदूरी से बचाया है। वे अभी तक बच्चों के हितों से जुड़ी कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा चुके हैं। 1998 में उन्होंने बाल श्रम के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय कानून की मांग को लेकर 103 देशों में 80 हजार किलोमीटर की यात्रा की।
लगभग 4 दशकों से बाल मजदूरी के खिलाफ लगातार बुलंद आवाज उठाने के लिए उन्हें कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है। वर्ष 2009 में उन्हें अमेरिका का "डिफेंडर ऑफ डेमोक्रेसी पुरस्कार", 2015 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय का प्रतिष्ठित "ह्यूमैनिटेरियन पुरस्कार", साथ ही कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। 2014 में उन्हें प्रतिष्ठित “नोबेल शांति पुरस्कार” से भी सम्मानित किया गया है।
श्री कैलाश सत्यार्थी जी ने 2018 में "एवरी चाइल्ड मैटर्स" नाम की किताब लिखी है, जिसमें उनके संघर्ष को दिखाते विभिन्न इंटरव्यूज़ की श्रंखला है। इसी साल 1 दिसंबर 2022 में उन्होंने "तुम पहले क्यों नहीं आए" नाम से किताब लिखी है। ये किताब 12 सच्ची कहानियों का संग्रह है, जिसमें उन्होंने बच्चों की दासता और उत्पीड़न के अलग-अलग प्रकार और खतरों के बारे में बताया है। साथ ही इन प्रेरक कहानियों से आप जान पाएंगे कि एक छोटी सी पहल से हम बच्चों को गुमनामी के अंधेरों से बाहर निकालकर एक अच्छी ज़िन्दगी दे सकते हैं।
बच्चों को दासता से मुक्त कराने के अपने जूनून में श्री कैलाश सत्यार्थी जी ने कई बार अपनी जान तक जोखिम में डाली। ऐसा ही एक वाकया 2004 में उत्तरप्रदेश के गोंडा में भी हुआ था। गोंडा के कर्नलगंज में एक सर्कस चल रहा था, जहाँ कुछ बच्चियों से काम करवाया जा रहा था। यह खबर जब कैलाश जी को पता चली तो वे वहां पहुँच गए। जब सर्कस वालों को इसकी जानकारी हुई, तो उन्हें डंडों और सरियों से पीटा गया और शेर के पिंजरे को भी खोल दिया गया। इस घटना में वे बाल-बाल बचे, साथ ही उन्होंने कई बच्चियों को मुक्त भी करवाया।
जब हम किसी भी लक्ष्य को ठान लेते हैं, तब किसी भी कीमत पर उसे पूरा करने का काम करते हैं। श्री कैलाश सत्यार्थी जी ने आज तक ना जाने कितने बच्चों को गुलामी, तस्करी और बाल मजदूरी से बचाया है। आज के समय में वे दिल्ली में मुक्ति आश्रम और जयपुर में बाल आश्रम चला रहे हैं, जहाँ वे गलत राह से बच्चों को बचाकर उनकी परवरिश और पढ़ाई का जिम्मा उठा रहे हैं। साथ ही वे किन्हीं कारणवश भटके हुए बच्चों को सही राह भी दिखा रहे हैं।