वजन कम करने की आदत ने नीरज चोपड़ा को गोल्ड मेडलिस्ट बना दिया
हाल ही में हंगरी के बुडापेस्ट में आयोजित विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत के गोल्डन बॉय नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल जीतकर देश को फिर से गौरवान्वित कर दिया है।
एक समय उन्होंने अपना वजन कम करने के लिए जिम जॉइन की और दोस्तों के साथ भाला फेंकना शुरू किया था। उस समय शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह बच्चा एक दिन भारत के लिए गोल्ड मेडल जीतेगा।
जन्म: | 24 दिसंबर 1997, पानीपत, हरियाणा |
पिता: | सतीश चोपड़ा |
माता: | सरोज देवी |
पुरस्कार: | अर्जुन अवार्ड - 2018
मेजर ध्यान चंद खेल रत्न अवार्ड - 2021 पद्म श्री - 2022 |
साल 2014 में नीरज चोपड़ा ने जेवलिन की शुरुआत 7000 रुपये के भाले से की थी।
आज नीरज चोपड़ा किसी पहचान के मोहताज नहीं है। आज जानिये कैसे उन्होंने Fat to Fit का सफर तय किया और आज पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं।
जानिये नीरज चोपड़ा की प्रेरणादायी कहानी –
पिता थे नीरज के मोटापे से परेशान.
नीरज का जन्म 24 दिसंबर 1997 को हरियाणा के पानीपत में सतीश चोपड़ा और सरोज देवी के घर हुआ। नीरज एक 19 सदस्यीय संयुक्त परिवार में रहते थे, जिसमें उनके माता पिता के अलावा उनके 3 चाचा और उनके बच्चे रहते थे।
नीरज की स्कूली शिक्षा पानीपत में ही हुई, इसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ से ग्रेजुएशन कम्पलीट की। नीरज बचपन से ही खाने के शौकीन थे, जिसके कारण उनका वजन बहुत बढ़ रहा था और उनके पिता इस बात से चिंतित थे। तब उन्होंने नीरज को एक जिम में भर्ती करवाया। नीरज शुरू शुरू में पिता का मान रखने के लिए जाते थे, धीरे-धीरे उन्हें इसका चस्का लग गया, जिससे उनका वजन बहुत कम हो गया।
कभी नहीं सोचा था जैवलिन में बनाएंगे करियर.
आज दुनिया के मशहूर जैवलिन खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने कभी नहीं सोचा था कि वे जैवलिन में ही अपना करियर बनाएंगे। दरअसल नीरज कई बार अपने दोस्तों के साथ खेल खेल में भाला फेंका करते थे। उस समय नीरज ने देखा कि वो अपने दोस्तों के मुकाबले ज्यादा दूर तक भाला फेंकते हैं। उसी समय जैवलिन के कुछ ट्रेनर भी नीरज को कुछ दूरी से देख रहे थे और उनके भाला फेंकने के तरीके से काफी प्रभावित हुए। उन्हीं में से 2 ट्रेनर अक्षय चौधरी और नसीम अहमद ने नीरज को जैवलिन की डिटेल में ट्रेनिंग दी। इन दोनों ने ही नीरज को जैवलिन की टेक्निक्स और जैवलिन फेंकने में ऐरोडायनामिक्स आदि के बारे में बताया, जिससे नीरज के गेम में और ज्यादा निखार आया।
शुरुआत में नीरज को जैवलिन की ज़रूरत थी, लेकिन उनका परिवार 1 लाख का जैवलिन खरीदने में सशक्त नहीं था, फिर भी नीरज के पिता ने 7 हजार रुपये जमा कर एक जैवलिन खरीदकर दिया, जिससे नीरज ने शुरुआती दौर में प्रैक्टिस की।
ऐसे बने वर्ल्ड चैंपियन.
नीरज लगातार प्रैक्टिस करते रहे, 2012 में लखनऊ में आयोजित नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल जीता, इसके बाद 2014 में यूथ ओलंपिक में पहली बार विश्व स्तर पर सिल्वर मैडल जीता। 2016 में आयोजित जूनियर विश्व चैंपियनशिप में वर्ल्ड लेवल पर नीरज ने गोल्ड मैडल जीता। इसके बाद नीरज ने ओलिंपिक खेलों, एशियन गेम्स, कामनवेल्थ गेम्स जैसी कई प्रतियोगिताएं में ना सिर्फ भारत का प्रतिनिधित्व किया, बल्कि कई सारे मैडल भी जीते।
विश्व चैम्पियनशिप स्तर पर एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले अभिनव बिंद्रा के बाद नीरज चोपड़ा दूसरे भारतीय हैं।
2017 में नीरज को स्पोर्ट्स कोटे से भारतीय सेना में नौकरी मिल गयी, उस समय उन्हें राजपुताना राइफल्स में नायब सूबेदार का पद दिया गया। 2018 में कामनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीतने के बाद उन्हें सूबेदार पद पर प्रमोट किया गया। इसके अलावा नीरज को 2018 में अर्जुन अवार्ड, 2021 में मेजर ध्यान चंद खेल रत्न अवार्ड और 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।